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Maharana Pratap Jayanti 2023: आज है महाराणा प्रताप जयंती, जानें-वीर सपूत के जीवन से जुड़ी अनसुनी बातें

Maharana Pratap Jayanti 2023 हिन्दू हृदय सम्राट महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के मेवाड़ में हुआ था। इनके पिता का नाम राणा उदय सिंह और माता का नाम जयवंता बाई था। इनका संबंध राजपूत परिवार से था। इनकी धर्मपत्नी अजबदे पुनवार थी।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 22 May 2023 02:27 PM (IST)
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Maharana Pratap Jayanti 2023: आज है महाराणा प्रताप जयंती, जानें-वीर सपूत के जीवन से जुड़ी अनसुनी बातें
नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क। Maharana Pratap Jayanti 2023: आज महाराणा प्रताप जयंती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। अतः हर वर्ष ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को महाराणा प्रताप जयंती मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से वीर योद्धा और हिन्दू हृदय सम्राट का जन्म 9 मई, 1540 को मेवाड़ में हुआ था। आज देशभर में महाराणा प्रताप जयंती धूम-धाम से मनाई जा रही है। महाराणा प्रताप की वीर गाथा अमर है। इनकी वीर गाथा आज भी किस्से कहानियों में सुनाई जाती है। इतिहासकारों का कहना है कि महाराणा प्रताप एक ऐसे योद्धा थे, जिन्हें दुश्मन भी सलाम करते थे। उनकी वीरता से भारत भूमि गौरवान्वित हुई है। आइए, महान योद्धा और भारत के वीर सपूत महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़ी अनसुनी बातें जानते हैं-

महाराणा प्रताप का जीवन

हिन्दू हृदय सम्राट महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को राजस्थान के मेवाड़ में हुआ था। इनके पिता का नाम राणा उदय सिंह और माता का नाम जयवंता बाई था। इनका संबंध राजपूत परिवार से था। इनकी धर्मपत्नी अजबदे पुनवार थी। विवाह उपरांत महाराणा प्रताप को दो संतान की प्राप्ति हुई थी। दोनों ही पुत्र थे। इनका नाम अमर सिंह और भगवान दास था। जिस घोड़े पर महान राजपूत योद्धा महाराणा प्रताप सवारी करते थे, उसका नाम चेतक था। अश्व चेतक महाराणा प्रताप की तरह वीर योद्धा था।

बचपन से ही महाराणा प्रताप साहसी थे। इसके लिए उन्हें युद्ध कौशल सीखने में कोई दिक्कत नहीं हुई। साथ ही हिन्दू हृदय सम्राट ईश्वर के अनुयायी थे। नित प्रतिदिन ईश्वर की पूजा उपासना करते थे। इसके पश्चात प्रजा की मदद करते थे। उन्हें मानवता का पुजारी भी कहा जाता था। महाराणा प्रताप के प्रथम गुरु उनकी मां थी।

राणा उदय सिंह की तीन रानियां थीं। इनमें रानी धीर बाई से राणा उदय सिंह को अत्यधिक स्नेह था। वह (रानी धीर बाई) चाहती थी कि उनका पुत्र राणा उदय सिंह का उत्तराधिकारी बने। हालांकि, राणा उदय सिंह चाहते थे कि महाराणा प्रताप उत्तराधिकारी बने। इसी गृह क्लेश की वजह से दुश्मनों को मौका मिल गया और दुश्मनों ने मेवाड़ पर हमला कर दिया। इसमें राजपूतों की हार हुई।

इस हार के बाद प्रजा की भलाई के लिए महाराणा प्रताप चित्तौड़ छोड़कर चले गए। इसके बाद सन 1576 में हल्दी घाटी की लड़ाई हुई। इस युद्ध में महाराणा प्रताप को अफगानी राजाओं का समर्थन प्राप्त था। अंतिम सांस तक अफगानी हाकिम खान सुर युद्ध में राजपूतों की तरफ से लड़े थे। अन्न की कमी के वजह से प्रताप की सेना को हार का सामना पड़ा।

इस युद्ध में प्रताप का घोड़ा चेतक घायल हो गया था। सन 1576 को नदी पार करने के दौरान उसकी मृत्यु हो गई। इस युद्ध के बाद प्रताप जंगल में ही रहने लगे और अंततः 29 जनवरी, 1597 को 57 साल की उम्र में उन्हें वीर गति प्राप्त हुई।