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Maharana Pratap Jayanti 2023: साल में दो बार क्यों मनाई जाती है महाराणा प्रताप की जयंती? जानिए कारण

Maharana Pratap Jayanti 2023 भारत में अंग्रेजी और हिन्दू कैलेंडर दोनों को महत्व दिया जाता है। बता दें कि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार उनकी जयंती 09 मई के दिन मनाई जाती है वहीं हिन्दू पंचांग के अनुसार तिथि निर्धारित की जाती है।

By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Mon, 22 May 2023 10:22 AM (IST)
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Maharana Pratap Jayanti 2023: साल में दो बार क्यों मनाई जाती है महाराणा प्रताप जयंती?
नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क | Maharana Pratap Jayanti 2023: महाराणा प्रताप उन वीर और निर्भीक शासकों में से थे जिन्हें, मुगलों का शासन कदापि स्वीकार न था। यही कारण है कि अपने जीवन काल में उन्होंने सदा अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए मुगलों को समय-समय पर दांतों तले चने चबाने पर मजबूर कर दिया। बता दें कि आज यानी 22 मई 2023, सोमवार के दिन मेवाड़ सपूत महाराणा प्रताप की जयंती मनाई जा रही है। लेकिन वीर योद्धा महाराणा प्रताप की जयंती को लेकर कई मत हैं। अंग्रेजी कैलेंडर की मानें तो महाराणा प्रताप जयंती 09 मई को मनाई जाती है, वहीं दूसरा दिन हिन्दू पंचांग में बताई गई तिथि के अनुसार निर्धारित किया जाता है। आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे छिपा कारण?

कब हुआ था वीर योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म?

भारत में अंग्रेजी कैलेंडर और हिन्दू पंचांग इन दोनों को महत्व दिया जाता है। अधिकांश भारतीय भूभाग में हिन्दू पंचांग के आधार पर ही व्रत एवं त्योहार निर्धारित किए जाते हैं। हम यदि महाराणा प्रताप के जन्म की बात करें तो अंग्रेंजी कैलेंडर के अनुसार, उनका जन्म 09 मई 1540 में हुआ था। वहीं ज्योतिष पंचांग की मानें तो उनका जन्म ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन पुष्य नक्षत्र में हुआ था, जो विक्रम संवत 2080 में आज के दिन है। यही कारण है कि कुछ ही दिनों के अंतराल पर वीर महाराणा प्रताप की जयंती दो बार मनाई जाती है।

महाराणा प्रताप से जुड़ी रोचक बातें

महाराणा प्रताप युद्ध कला और नीति निर्माण में निपुण थे। आज भी मेवाड़ में उनके शौर्य की गाथा लोकगीतों के माध्यम से बताई जाती है। बता दें कि उनकी विशेषता यह थी कि युद्ध के समय वह एक मयान में दो तलवार रखते थे। एक स्वयं के लिए और दूसरा शत्रु के लिए। एक कुशल योद्धा की भांति वह भी किसी निहत्थे पर वार नहीं करते थे। जिस वजह से आवश्यकता पड़ने पर वह अपनी ही तलवार शत्रु को लड़ने के लिए दे देते थे। यह शिक्षा उन्हें  अपनी जयवंता बाई से प्राप्त हुआ था।