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सभी धर्र्मों के सम्मान के पक्षधर थे महावीर

महावीर स्वामी ने अपने स्यादवाद सिद्धांत के जरिये एक वस्तु को विभिन्न दृष्टिकोण से देखना सिखाया। इसके लिए उन्होंने भाषा के स्तर पर प्रयोग भी किए...

By Preeti jhaEdited By: Updated: Wed, 13 Apr 2016 02:51 PM (IST)
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महावीर स्वामी ने अपने स्यादवाद सिद्धांत के जरिये एक वस्तु को विभिन्न दृष्टिकोण से देखना सिखाया। इसके लिए उन्होंने भाषा के स्तर पर प्रयोग भी किए...

महावीर स्वामी ने अपने दर्शन के प्रचार-प्रसार के लिए भाषा के स्तर पर काफी प्रयोग किए थे। महावीर ने जो

सबसे बड़ी क्रांति की थी, वह थी उनकी संवाद-शैली। जिस अतींद्रिय ज्ञान के माध्यम से उन्होंने आत्मा के

सत्य के बहुआयामी स्वरूप को जान लिया था, उसे व्याख्यायित करते समय उनके सामने दो समस्याएं थीं।

एक तो सभी लोग संस्कृत नहीं जानते थे और दूसरी इंद्रियों की सीमित क्षमता वाले लोगों को अतींद्रिय को

अभिव्यक्त करना कठिन था। इसके समाधान के लिए उन्होंने तत्कालीन जनभाषा प्राकृत में प्रवचन देना प्रारंभ

किया। दूसरे, एक ही सत्य के अनेक विरोधी स्वरूपों को व्यक्त करने के लिए उन्होंने ‘स्यादवाद’ की शैली

का आविष्कार किया। यहां स्यात् का अर्थ है- सापेक्ष। वाद शब्द का अर्थ कथन होता है, अत: स्यादवाद का

अर्थ है किसी के सापेक्ष कथन। महावीर कहते हैं कि यदि हम स्यात् का प्रयोग करें तो श्रोता समझ जाएगा

कि अभी वस्तु का एक धर्म (पक्ष) समझाया जा रहा है,

लेकिन अन्य धर्म भी हैं, जिनका निषेध नहीं हैं। महावीर कहते हैं कि आप ‘ही’ की जगह ‘भी’ का प्रयोग करें,

तो संघर्ष नहीं रहेगा। जैसे आप कहें कि मेरा संप्रदाय ‘भी’ अच्छा है तो कभी किसी को कोई परेशानी नहीं है, किंतु जब आप यह कहते हैं कि मेरा संप्रदाय ‘ही’ अच्छा है तो संघर्ष हो जाता है। महावीर कहते हैं, हमारी भाषा की शैली अहिंसक होनी चाहिए। जैसे यदि ‘सब्जी काट दो’ की जगह अगर आप ‘सब्जी बना दो’ कहें तो ज्यादा उपयुक्त होगा। महावीर ने साधना के क्षेत्र में भी भाषा को लेकर बहुविध प्रयोग किए थे।