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Makar Sankranti 2023: खिचड़ी और मकर संक्रांति का रिश्ता है बेहद खास, जानें इसके पीछे छिपा अध्यात्मिक कारण

Makar Sankranti 2023 प्रतिवर्ष जब सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में आते हैं उस दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है। इस त्योहार पर खिचड़ी जरूर दान की जाती है। विशेष रुप से उड़द की दाल की खिचड़ी।

By Jagran NewsEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Fri, 06 Jan 2023 10:25 PM (IST)
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Makar Sankranti 2023: खिचड़ी और मकर संक्रांति का है गहरा संबंध।
नई दिल्ली, Makar Sankranti 2023: मकर संक्रांति पर खिचड़ी का दान अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। विशेष तौर पर इस दिन साबुत उड़द या काली उड़द और चावल को मिलाकर खिचड़ी का दान किया जाता है। साथ ही इस दिन गुड़, घी, नमक और तिल के दान करने का भी विशेष महत्व होता है। मकर संक्रांति के साथ एक बेहद रोचक कथा भी जुड़ी हुई है जिसमें साधु-संतों के देश हित में संघर्ष के बारे में बताया गया है।

हर पर्व और देवता के साथ जुड़ा है खाद्य सामग्री का रिश्ता

हमारे देश में हर बात का संबंध पूजा-पाठ, पर्व त्योहार और देवताओं से जुड़ा हुआ रहता है। हम जो भी खाते पीते हैं वह भी कहीं ना कहीं ईश्वर का प्रसाद ही माना जाता है। पंडित मुन्ना बाजपेई रामजी ने कहा कि मकर संक्रांति भी इसका अपवाद नहीं है। इस दिन दान किए जाने वाले और भोजन के रूप में ग्रहण किए जाने वाले हर खाद्य का संबंध इस त्यौहार से जुड़ा हुआ है।

दाल शनि से और चावल सूर्य के है प्रिय

संक्रांति पर प्रयोग की जाने वाली साबुत उड़द या काली उड़द का संबंध जहां शनिदेव से है, वहीं सफेद चावल सूर्य देव की कृपा का पात्र बनाते हैं। सूर्य - शनि के पिता माने जाते हैं। इस तरह मकर संक्रांति पर काली उड़द और चावल की खिचड़ी दान करने से दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके अलावा जल चंद्रमा के लिए, नमक शुक्र के लिए, हल्दी बृहस्पति गुरु के लिए, और हरी सब्जियां बुध को प्रसन्न करने के लिए दान की जाती हैं। इस दिन खिचड़ी खाना नवग्रहों को भी संतुष्ट करता है ऐसी मान्यता है।

योगियों के संघर्ष की सहयोगी है खिचड़ी

मकर संक्रांति पर्व के शुरू होने, और इस दिन खिचड़ी के महत्व को बताने वाली एक अत्यंत रोचक कथा भी बताई जाती है। कहते हैं जब अलाउद्दीन खिलजी ने भारत पर आक्रमण किया तो उसके विरुद्ध बाबा गोरखनाथ ने भी अपने शिष्यों के साथ संघर्ष किया था। युद्ध के कारण अक्सर योगी अपना भोजन नहीं बना पाते थे। तब बाबा ने दाल चावल और सब्जियों को मिलाकर खाना बनाने के लिए कहा। इस व्यंजन को खिचड़ी का नाम दिया गया। इसके बाद खिलजी के हिंदुस्तान छोड़ने के उपरांत योगियों ने मकर संक्रांति के दिन उत्सव मनाया, और इस दिन खिचड़ी का प्रसाद वितरित किया गया। तबसे खिचड़ी और मकर संक्रांति का गहरा संबंध बन गया।

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।