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Makar Sankranti 2024: मकर संक्रांति के दिन पूजा के समय करें इन मंत्रों का जाप, दूर होंगे सभी दुख और संताप

Makar Sankranti 2024 धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति तिथि पर गंगा स्नान कर पूजा-पाठ और दान-पुण्य करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। साथ ही सुख-समृद्धि और आय में वृद्धि होती है। इसके अलावा जन्म जन्मांतर में किए गए सारे पापों से मुक्ति मिलती है। अगर आप भी भगवान भास्कर की कृपा के भागी बनना चाहते हैं तो आज स्नान-ध्यान कर सूर्य देव की उपासना करें।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 15 Jan 2024 11:00 AM (IST)
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Makar Sankranti 2024: मकर संक्रांति के दिन पूजा के समय करें इन मंत्रों का जाप

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Makar Sankranti 2024: आत्मा के कारक सूर्य देव राशि परिवर्तन कर मकर राशि में प्रवेश कर चुके हैं। सूर्य देव के मकर राशि में गोचर के शुभ अवसर पर देशभर में मकर संक्रांति का त्योहार उत्साह और उमंग के साथ मनाया जा रहा है। यह पर्व हर वर्ष पौष महीने में सूर्य देव के धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करने की तिथि पर मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा समेत अन्य पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। साथ ही पूजा, जप-तप और दान-पुण्य कर रहे हैं।

धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति तिथि पर गंगा स्नान कर पूजा-पाठ और दान-पुण्य करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। साथ ही सुख-समृद्धि और आय में वृद्धि होती है। इसके अलावा, जन्म जन्मांतर में किए गए सारे पापों से भी मुक्ति मिलती है। अगर आप भी भगवान भास्कर की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो आज स्नान-ध्यान कर विधि-विधान से सूर्य देव की उपासना करें। साथ ही पूजा के समय इन मंत्रों का जाप और सूर्य स्तोत्र का पाठ करें। आज भगवान शिव का अभिषेक अवश्य करें। 

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सूर्य मंत्र

एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।

अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।

सूर्य वैदिक मंत्र

ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च ।

हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।

सूर्य तांत्रिक मंत्र

ऊँ घृणि: सूर्यादित्योम

ऊँ घृणि: सूर्य आदित्य श्री

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय: नम:

ऊँ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नम:

सूर्य का पौराणिक मंत्र

जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम ।

तमोsरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोsस्मि दिवाकरम ।।

सूर्य गायत्री मंत्र

ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात ।।

भगवान विष्णु मंत्र

शांता कारम भुजङ्ग शयनम पद्म नाभं सुरेशम।

विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम।

लक्ष्मी कान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म।"

सूर्य स्तोत्र

प्रात: स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यंरूपं हि मण्डलमृचोऽथ तनुर्यजूंषी ।

सामानि यस्य किरणा: प्रभवादिहेतुं ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यचिन्त्यरूपम् ।।

प्रातर्नमामि तरणिं तनुवाऽमनोभि ब्रह्मेन्द्रपूर्वकसुरैनतमर्चितं च।

वृष्टि प्रमोचन विनिग्रह हेतुभूतं त्रैलोक्य पालनपरंत्रिगुणात्मकं च।।

प्रातर्भजामि सवितारमनन्तशक्तिं पापौघशत्रुभयरोगहरं परं चं।

तं सर्वलोककनाकात्मककालमूर्ति गोकण्ठबंधन विमोचनमादिदेवम् ।।

ॐ चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्ने:।

आप्रा धावाप्रथिवी अन्तरिक्षं सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्र्व ।।

सूर्यो देवीमुषसं रोचमानां मत्योन योषामभ्येति पश्र्वात् ।

यत्रा नरो देवयन्तो युगानि वितन्वते प्रति भद्राय भद्रम् ।।

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