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Makar Sankranti 2024: इच्छा मृत्यु का वरदान मिलने के बाद भी क्यों बाण शैया पर लेटे रहे थे भीष्म पितामह ?

जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण ने मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को अपने परम शिष्य अर्जुन को गीता उपदेश दिया था। गीता उपदेश के दौरान भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से बोलते हैं- हे अर्जुन! सूर्य के दक्षिणायन होने के दौरान जब कोई व्यक्ति कृष्ण पक्ष की रात में शरीर त्यागता है तो वह व्यक्ति पुनः मृत्यु लोक लौट कर आता है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 19 Dec 2023 06:51 PM (IST)
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Makar Sankranti 2024: जानें, क्यों बाण शैया पर लेटे रहे थे भीष्म पितामह ?
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Makar Sankranti 2024: सनातन धर्म में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान का विधान है। साथ ही पूजा, जप-तप और दान-पुण्य किया जाता है। धार्मिक मत है कि संक्रांति तिथि पर गंगा स्नान करने से अनजाने में किए गए सारे पाप धूल जाते हैं। इस दिन पितरों का तर्पण और पिंडदान किया जाता है। इससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। सूर्य देव मकर संक्रांति तिथि पर उत्तरायण होते हैं। सूर्य के उत्तरायण होने के पश्चात भीष्म पितामह ने देह का त्याग किया था। आइए, इसके बारे में जानते हैं-

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जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण ने मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को अपने परम शिष्य अर्जुन को गीता उपदेश दिया था। गीता उपदेश के दौरान भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से बोलते हैं- हे अर्जुन! सूर्य के दक्षिणायन होने के दौरान जब कोई व्यक्ति कृष्ण पक्ष की रात में शरीर त्यागता है, तो वह व्यक्ति चंद्र लोक को जाता है और पुनः मृत्यु लोक लौट कर आता है। ऐसे लोगों को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। यह क्रम चलता रहता है। वहीं, सूर्य उत्तरायण होने के दौरान शुक्ल पक्ष के समय दिन के उजाले में अपने प्राण त्यागता है। उस सत्यवान व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। आसान शब्दों में कहें तो वह पुनः मृत्यु लोक में नहीं लौटता है। उसे परमधाम प्राप्त होता है।

कब मनाई जाती है भीष्म अष्टमी ?

हर वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी मनाई जाती है। इसी दिन भीष्म पितामह ने देह त्याग किया था। शास्त्रों में वर्णित है कि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। इसके बावजूद महाभारत युद्ध के पश्चात तीरों से घायल भीष्म पितामह ने सूर्य उत्तरायण होने के पश्चात माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान नारायण को प्रणाम कर अंतिम सांस ली थी।  

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डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।