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Makar Sankranti 2024: आखिर क्यों मकर संक्रांति के दिन खाया जाता है दही-चूड़ा? जानें इसका कारण

Makar Sankranti 2024 मकर संक्रांति का पर्व बेहद शुभ माना गया है। यह पर्व ज्यादातर 14 जनवरी के दिन मनाया जाता है लेकिन इस बार यह 15 जनवरी को मनाया जाएगा। इस दिन भक्त गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं और पूजा-पाठ करते हैं जबकि कुछ दही-चूड़ा खाते हैं और दान-पुण्य करते हैं। तो आइए इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें जानते हैं -

By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi DwivediUpdated: Mon, 08 Jan 2024 01:06 PM (IST)
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Makar Sankranti 2024: आखिर क्यों मकर संक्रांति के दिन खाया जाता है दही-चूड़ा?
धर्म डेस्क, नई दिल्ली।Makar Sankranti 2024: मकर संक्रांति पूरे देश में हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले पर्वों में से एक है। यह पर्व बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह त्योहार तप, पूजा, दान और त्याग के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस पर्व को लोग संक्रांति के नाम से भी जानते हैं, ज्यादातर यह पर्व 14 जनवरी को मनाया जाता है, लेकिन इस बार यह 15 जनवरी को मनाया जाएगा।

इस दिन भक्त गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं और पूजा-पाठ करते हैं, जबकि कुछ दही-चूड़ा खाते हैं और दान-पुण्य करते हैं।

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मकर संक्रांति पर दही-चूड़ा क्यों खाया जाता है ?

आपको बता दें, बिहार में, मकर संक्रांति दही-चूड़ा, लाई-तिलकुट और पतंग उड़ाकर मनाई जाती है। यह न केवल स्वादिष्ट है बल्कि काफी स्वास्थ्यवर्धक भी है। इसे आमतौर पर दान और दान के कार्य के बाद खाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि दही-चूड़ा खाने से सुख-सौभाग्य बढ़ता है।

साथ ही इससे ग्रह दोष भी समाप्त होता है। वहीं अगर यह परिवार के साथ बैठकर खाया जाए, तो इससे रिश्तों में मधुरता आती है।

दही-चूड़ा खाने से पहले करें ये काम

सुबह गंगा स्नान अवश्य करें। सबसे पहले सूर्यदेव को अर्घ्य दें। इसके बाद कुछ दान और पुण्य करें। दही-चूड़ा खाने से पूर्व भगवान सूर्य के मंत्रों का जाप करें। इससे कुंडली में सूर्य की स्थिति प्रबल होती है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

भगवान सूर्य का पूजन मंत्र

  • ''ॐ घृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य:
  • ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः
  • ॐ घृणि सूर्याय नम:
  • ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा
  • ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:
  • ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ''
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