Move to Jagran APP

Hanuman Ji: मंगलवार को करें बस ये एक काम, हनुमान जी की कृपा से मिट जाएंगे सारे संकट

Mangalwar Ke Upay मंगलवार के दिन हनुमान जी की विधिवत पूजा करने के साथ चालीसा मंत्र के साथ हनुमान स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। नियमित रूप से इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को हर तरह के संकटों से छुटकारा मिल जाएगा।

By Shivani SinghEdited By: Shivani SinghUpdated: Tue, 17 Jan 2023 08:52 AM (IST)
Hero Image
Mangalwar Ke Upay: रोजाना पढ़ें हनुमान स्तोत्र का पाठ

नई दिल्ली, Mangalwar Ke Upay: पंचांग के अनुसार, मंगलवार का दिन भगवान हनुमान को समर्पित है। इसलिए मंगलवार के दिन बजरंगबली की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखने का विधान है। मान्यता है कि हनुमान जी की पूजा सच्चे मन से हर संकट से छुटकारा मिल जाता है। इसके साथ ही मंगल दोष से भी निजात मिल जाती है। ऐसे ही आप चाहे तो हर मंगलवार के दिन हनुमान स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। विधिपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को रोग, दोष और भय से छुटकारा मिल जाता है।

ऐसे करें हनुमान स्तोत्र का पाठ

हर मंगलवार के दिन स्नान आदि करने के बाद हनुमान मंदिर जाएं और बजरंगबली के समक्ष चमेली केतेल का दीपक जलाएं। इसके बाद भगवान का मनन करते हुए हनुमान स्तोत्र का पाठ करें। इसके बाद विधिवत आरती कर लें। आप चाहे तो हर मंगलवार को प्रसाद के रूप में बूंदी के लड्डू बांट सकते हैं।

श्री हनुमान स्तोत्र (Shree Hanuman Stotra)

वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम्।रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥

सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं। वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न॥

भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।

सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं, समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्॥१॥

सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न।

इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥ २॥

सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ।

कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम्॥३॥

सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्।

प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः॥४॥

प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत्।

विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम्॥५॥

नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्।

सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम्॥६॥

रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम्।

विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम्॥७॥

नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः।

सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम्॥८॥

इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः।

प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह॥९॥

नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे। लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥ १०॥

ॐ इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्॥

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।