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Margashirsha Amavasya 2023: कब है मार्गशीर्ष अमावस्या? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व

शास्त्रों में निहित है कि अमावस्या और पूर्णिमा तिथियों पर गंगा स्नान करने से अनजाने में किए हुए सारे पाप कट जाते हैं। अतः बड़ी संख्या में श्रद्धालु अमावस्या तिथि पर गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करते हैं। इसके पश्चात विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि अमावस्या तिथि पर पूजा जप-तप और दान करने से अमोघ फल की प्राप्ति होती है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 05 Dec 2023 01:09 PM (IST)
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Margashirsha Amavasya 2023: कब है मार्गशीर्ष अमावस्या? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Margashirsha Amavasya 2023: सनातन धर्म में अमावस्या और पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन पूजा, जप-तप और दान करने का विधान है। साथ ही अमावस्या और पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान भी किया जाता है। शास्त्रों में निहित है कि अमावस्या और पूर्णिमा तिथियों पर गंगा स्नान करने से अनजाने में किए हुए सारे पाप कट जाते हैं। अतः बड़ी संख्या में श्रद्धालु अमावस्या तिथि पर गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करते हैं। इसके पश्चात, विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि अमावस्या तिथि पर पूजा, जप-तप और दान करने से अमोघ फल की प्राप्ति होती है। साथ ही घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है। आइए, मार्गशीर्ष अमावस्या की तिथि और शुभ मुहूर्त जानते हैं-

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शुभ मुहूर्त

ज्योतिषियों की मानें तो मार्गशीर्ष माह की अमावस्या तिथि 12 दिसंबर को प्रातः काल 06 बजकर 24 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 13 दिसंबर को 05 बजकर 01 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। अतः 12 दिसंबर को मार्गशीर्ष अमावस्या है।

योग

मार्गशीर्ष अमावस्या पर धृति योग का निर्माण हो रहा है। धृति योग संध्याकाल 06 बजकर 52 मिनट तक है। इस योग में भगवान विष्णु की पूजा करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।

पूजा विधि

मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन ब्रह्म बेला में उठें और भगवान विष्णु को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें। दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। अगर सुविधा है, तो गंगा या पवित्र नदी में स्नान करें। इस समय सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें। साथ ही तिलांजलि दें। हथेली में तिल रखकर बहती जलधारा में प्रवाहित करें। इसके बाद पंचोपचार कर विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें। इस समय विष्णु चालीसा का पाठ करें। साथ ही विष्णु स्तोत्र और मंत्र जाप करें। अंत में आरती कर सुख, समृद्धि और धन वृद्धि की कामना करें। पूजा के बाद आर्थिक स्थिति के अनुरूप दान-पुण्य करें।

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डिसक्लेमर:'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'