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Masik Durgashtami 2024: मासिक दुर्गाष्टमी के दिन पूजा के समय करें इस चालीसा का पाठ, दूर होंगे सभी दुख और संताप

Masik Durgashtami 2024 धार्मिक मान्यता है कि मासिक दुर्गाष्टमी के दिन विधि पूर्वक जगत जननी मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करने से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। साथ ही घर में सुख समृद्धि एवं खुशहाली का आगमन होता है। अगर आप भी मां दुर्गा की कृपा के भागी बनना चाहते हैं तो मासिक दुर्गाष्टमी पर स्नान-ध्यान के बाद विधि-विधान से मां दुर्गा की पूजा करें।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 18 Jan 2024 07:00 AM (IST)
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Masik Durgashtami 2024: मासिक दुर्गाष्टमी के दिन पूजा के समय करें इस चालीसा का पाठ

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Masik Durga Ashtami 2024: हर माह शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत-उपवास भी रखा जाता है। इस प्रकार आज मासिक दुर्गाष्टमी है। धार्मिक मान्यता है कि मासिक दुर्गाष्टमी के दिन विधि पूर्वक जगत जननी मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करने से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। साथ ही घर में सुख, समृद्धि एवं खुशहाली का आगमन होता है। अगर आप भी मां दुर्गा की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो मासिक दुर्गाष्टमी पर स्नान-ध्यान के बाद विधि-विधान से मां दुर्गा की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय दुर्गा चालीसा का पाठ अवश्य करें। दुर्गा चालीसा के पाठ से साधक के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं।

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दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।

नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।

तिहूँ लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला।

नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे।

दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना।

पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।

तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥  

रूप सरस्वती को तुम धारा।

दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।

परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।

हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।

श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।

दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।

महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावती माता।

भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी।

छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी।

लांगुर वीर चलत अगवानी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै ।

जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।

जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।

तिहूं लोक में डंका बाजत॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।

रक्तबीज शंखन संहारे॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी।

जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।

सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ सन्तन र जब जब।

भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अमरपुरी अरु बासव लोका।

तब महिमा सब रहें अशोका॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।

तुम्हें सदा पूजें नरनारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें।

दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।

जन्ममरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।

योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

शंकर आचारज तप कीनो।

काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।

काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप को मरम न पायो।

शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।

जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।

दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।

तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें।

मोह मदादिक सब बिनशावें॥

शत्रु नाश कीजै महारानी।

सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

करो कृपा हे मातु दयाला।

ऋद्धि सिद्धि दै करहु निहाला॥

जब लगि जिऊँ दया फल पाऊं ।

तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।

सब सुख भोग परम पद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी।

करहु कृपा जगदम्ब भवानी।।

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