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Masik Krishna Janmashtami 2024: इस दिन मनाई जाएगी मासिक कृष्ण जन्माष्टमी, जानें कथा और स्तुति

Masik Krishna Janmashtami 2024 यह दिन सनातन धर्म के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। लगभग हर जगह यह व्रत रखा जाता है। ग्रंथों और कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण वासुदेव और देवकी के आठवें पुत्र हैं। पौष माह के दौरान यह पर्व 03 जनवरी 2024 को मनाया जाएगा। यह दिन भगवान कृष्ण की पूजा के लिए समर्पित है। इस शुभ दिन पर भक्त भगवान कृष्ण के जन्म का जश्न मनाते हैं।

By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi DwivediUpdated: Sun, 31 Dec 2023 08:00 AM (IST)
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Masik Krishna Janmashtami 2024: मासिक कृष्ण जन्माष्टमी
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Masik Krishna Janmashtami 2024: मासिक कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बेहद खास माना गया है। पौष माह के दौरान यह पर्व 03 जनवरी 2024 को मनाया जाएगा। यह दिन भगवान कृष्ण की पूजा के लिए समर्पित है। इस शुभ दिन पर भक्त भगवान कृष्ण के जन्म का जश्न मनाते हैं। मासिक जन्माष्टमी हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। कहा जाता है, जो लोग इस दिन सच्ची श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

मासिक कृष्ण जन्माष्टमी कथा

यह दिन सनातन धर्म के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। लगभग हर जगह यह व्रत रखा जाता है। ग्रंथों और कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण वासुदेव और देवकी के आठवें पुत्र हैं और उनसे पहले, अन्य सभी सात पुत्रों को असुर राजा कंस ने मार डाला था। आठवें पुत्र को देवताओं ने आशीर्वाद दिया और भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में कंस के कारागार में देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ। ऐसा माना जाता है कि इसके बाद जेल के ताले खुल गए और पहरेदार सो गए. इसके बाद वासुदेव नंद गांव पहुंचे और कृष्ण के साथ उफनती हुई यमुना को पार किया और नंद बाबा को यशोदा को सौंप दिया।

बाद में कृष्ण ने कंस का वध कर प्रजा को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार हमें कंस की क्रूरता और देविकी और वासुदेव के संघर्ष की याद दिलाता है। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

इस स्तुति से करें भगवान कृष्ण की पूजा

भये प्रगट कृपाला दीन दयाला,यशुमति के हितकारी, हर्षित महतारी रूप निहारी, मोहन मदन मुरारी।

कंसासुर जाना अति भय माना, पूतना बेगि पठाई, सो मन मुसुकाई हर्षित धाई, गई जहां जदुराई।

तेहि जाइ उठाई ह्रदय लगाई, पयोधर मुख में दीन्हें, तब कृष्ण कन्हाई मन मुसुकाई, प्राण तासु हरि लीन्हें।

जब इन्द्र रिसाये मेघ बुलाये, वशीकरण ब्रज सारी, गौवन हितकारी मुनि मन हारी, नखपर गिरिवर धारी।

कंसासुर मारे अति हंकारे, वत्सासुर संहारे, बक्कासुर आयो बहुत डरायो, ताकर बदन बिडारे।

अति दीन जानि प्रभु चक्रपाणी, ताहि दीन निज लोका, ब्रह्मासुर राई अति सुख पाई, मगन हुए गए शोका।

यह छन्द अनूपा है रस रूपा, जो नर याको गावै, तेहि सम नहिं कोई त्रिभुवन मांहीं, मन-वांछित फल पावै।

दोहा- नन्द यशोदा तप कियो, मोहन सो मन लाय तासों हरि तिन्ह सुख दियो, बाल भाव दिखलाय।

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'