Muharram 2023: कब है यौम-ए-आशूरा? जानें-इस्लामिक साल शुरू होने की पूरी कहानी
Muharram 2023 इस्लाम धर्म का उदय सऊदी अरब के मदीना शहर से हुआ। इस शहर से 1140 किलोमीटर दूर शाम में मुआविया नाम के शासक का शासन था। उसकी मृत्यु के बाद शाही वारिस के रूप में यजीद गद्दी पर बैठा। यजीद की यह रजा थी कि उसके उत्तराधिकारी बनने की पुष्टि स्वयं मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन करें। तत्कालीन समय में लोग उनको पूज्य मानते थे।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 19 Jul 2023 03:26 PM (IST)
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Muharram 2023: इस्लाम धर्म का पवित्र महीना मुहर्रम 19 जुलाई से शुरू हो रहा है। इस्लाम धर्म गुरुओं की मानें तो 18 जुलाई को मुहर्रम के चांद का दीदार नहीं हुआ है। अतः 19 जुलाई को चांद का दीदार किया जाएगा। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, मुहर्रम नए साल का पहला महीना होता है। इसे 'गम का महीना' भी कहा जाता है। इस दिन से नए इस्लामिक साल की शुरुआत होती है। मुहर्रम महीने की दसवीं तारीख को यौम-ए-आशूरा कहा जाता है। इस साल 29 जुलाई को यौम-ए-आशूरा मनाया जाएगा। इतिहासकारों की मानें तो 1400 वर्ष पूर्व मुहर्रम महीने की दसवीं तारीख को अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद के छोटे नवासे इमाम हुसैन और उनके परिवार के लोगों की हत्या कर दी गई थी। इसमें इमाम हुसैन के अनुयायी भी शामिल थे। इसलिए मुहर्रम महीने में उन शहीदों की याद में मातम मनाया जाता है। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
क्या है इतिहास?
इस्लाम धर्म का उदय सऊदी अरब के मदीना शहर से हुआ था। इस शहर से 1140 किलोमीटर दूर 'शाम' में मुआविया नाम के शासक का शासन था। उसकी मृत्यु के बाद शाही वारिस के रूप में यजीद गद्दी पर बैठा। यजीद की यह रजा थी कि उसके उत्तराधिकारी बनने की पुष्टि खुद मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन करें। उस समय में लोग उनको पूज्य मानते थे। हालांकि, मोहम्मद साहब के घर के लोगों ने उन्हें शासक मानने से इंकार कर दिया। साथ ही उनकी याचिका भी ख़ारिज कर दी। उनका कहना था कि यजीद इस्लामिक मूल्यों को नहीं जानते हैं और न समझना चाहते हैं। उस समय हुसैन ने फैसला लिया कि वह नाना के शहर मदीना को छोड़ देंगे। इससे मदीना में अमन कायम रहेगा।
इसके बाद हुसैन अपने परिवारजनों के साथ मदीना छोड़कर जाने लगे। वे सभी इराक की तरफ बढ़ रहे थे। तभी यजीद की फौज ने उन्हें घेर लिया। उस समय यजीद ने उनके सामने दोबारा शर्तें रखीं। इस बार भी इमाम हुसैन ने इंकार कर दिया। यह सुन यजीद ने जंग का ऐलान कर दिया। इमाम हुसैन परिवारजनों के साथ फरात नदी के किनारे ठहर गए। सात दिनों में पूरा राशन खत्म हो गया। इसके बाद इमाम हुसैन और बाकी लोग 10 मुहर्रम तक भूखे प्यासे रहे। उस समय उन्होंने मजबूरी में जंग लड़ी। इस युद्ध में एक-एक कर इमाम हुसैन के परिवार के सभी लोग मारे गए। आखिर में दोपहर की नमाज अदा करने के बाद इमाम खुद गए। इस युद्ध में वे भी शहीद हो गए। इस दिन को यौम-ए-आशूरा कहा जाता है।
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