Mundan Sanskar: जन्म के बाद क्यों जरूरी माना जाता है मुंडन संस्कार, स्वास्थ्य की दृष्टि से भी है फायदेमंद
हिन्दू धर्म में व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कार बताए गए हैं। इन्हीं में से आठवां संस्कार है चूड़ाकर्म संस्कार जिसे आम बोल चाल की भाषा में मुंडन कहा जाता है। धार्मिक दृष्टि से तो इस संस्कार को महत्वपूर्ण माना ही गया है साथ ही इसका वैज्ञानिक महत्व भी माना गया है। दरअसल मुंडन को बच्चे के स्वास्थ्य से भी जोड़कर देखा जाता है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में मुंडन एक विशेष समारोह के रूप में किया जाता है। जब किसी शिशु का जन्म होता है, तो एक निश्चित समय बाद उसका मुंडन करवाना जरूरी समझा जाता है। मुख्य रूप से जन्म के 1 साल, तीसरे, पांचवें या फिर सातवें साल में शुभ मुहूर्त देखकर ही मुंडन संस्कार (Mundan Sanskar) कराने की प्रथा है। तो चलिए जानते हैं कि हिंदू धर्म में मुंडन का क्या महत्व है और यह बच्चे के स्वास्थ्य के लिए क्यों जरूरी माना गया है।
ये है धार्मिक कारण
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शिशु के सिर पर उगने वाले बालों को पिछले जन्म के कर्मों से जोड़कर देखा जाता है। ऐसे में मुंडन कराने और बालों का विसर्जन करने से बच्चे को पूर्व जन्म के कर्मों से मुक्ति मिल जाती है और नई शुरुआत की अनुमति मिलती है। इसके साथ ही यह माना जाता है कि मुंडन संस्कार से जातक को दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
ये हैं वैज्ञानिक कारण
मुंडन के बाद सिर की त्वचा आसानी से सूर्य की रोशनी के संपर्क में आ जाती है, जिससे त्वचा को विटामिन डी अवशोषित करने में सहायता मिलती है। इसके साथ ही मुंडन के द्वारा बच्चे की गर्भावस्था की अशुद्धियां भी दूर हो जाती हैं। ऐसे में मुंडन संस्कार बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी माना गया है।यह भी पढ़ें - Nirjala Ekadashi 2024: इन शुभ योग के बीच होगा निर्जला एकादशी व्रत का पारण, मिलेगा पूजा का पूर्ण फल
मुंडन संस्कार विधि
मुंडन संस्कार, शुभ मुहूर्त में घर के आंगन में तुलसी के पास या फिर किसी धार्मिक स्थल पर भी किया जा सकता है। मुंडन से पहले हवन करवाया जाता है। मां बच्चे को अपनी गोद में लेकर बैठती हैं। इस दौरान मुंह पश्चिम दिशा की ओर रखा जाता है। इसके बाद बच्चे के बाल उतारकर, सिर को गंगाजल से धुलवाया जाता है। इसके बाद सिर पर हल्दी का लेप लगाया जाता है।कौन-सी तिथि है शुभ
हिंदू पंचांग के अनुसार, मुंडन के लिए द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी तिथि शुभ मानी जाती है। इसके साथ ही अश्विनी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, पुनर्वसु, चित्रा, स्वाति, ज्येष्ठ, श्रवण, धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र में भी मुंडन करवाना बेहतर माना जाता है।अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।