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Lord Vishnu: भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर क्यों हैं विराजमान? जानें इसके पीछे का कारण

हिंदू धर्म में भगवान विष्णु की पूजा बेहद शुभ मानी जाती है। उनकी पूजा करने से सुख और शांति की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन की समस्त बाधाओं का अंत होता है। वहीं आज हम श्री हरि शेषनाग (Lord Vishnu And Sheshnag) की शैय्या पर क्यों सोते हैं? इसके पीछे का क्या कारण है? इसके बारे में जानेंगे जो बेहद रहस्यमयी है।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sat, 17 Aug 2024 01:31 PM (IST)
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Lord Vishnu: शेषनाग पर ही क्यों सोते हैं श्री हरि?

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि श्री हरि की पूजा से व्यक्ति को जीवन के सभी मुश्किलों का अंत होता है। साथ ही सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। वहीं, आज हम भगवान विष्णु शेष नाग (Lord Vishnu And Sheshnag) की शैय्या पर क्यों विराजमान हैं? इसके पीछे की वजह जानेंगे, जिसके पीछे की कथा बहुत रोचक है, तो चलिए इसके बारे में जानते हैं।

सृष्टि को देते हैं ये संदेश

आपने अक्सर चित्र व प्रतिमा में भगवान विष्णु को शांत मुद्रा में बेहद आराम से शेषनाग पर विराजमान देखा होगा, जिसे देखकर आपके मन में यह सवाल आया होगा कि आखिर श्री हरि ने अपने शयन के लिए शेषनाग को ही क्यों चुना? दरअसल, इसके पीछे का कारण यह है कि भगवान विष्णु जगत के पालनहार और शेषनाग काल का प्रतीक हैं, जिनपर नारायण ने विजय प्राप्त कर ली है।

इसके साथ ही इससे यह भी प्रेरणा मिलती है कि कैसे? सभी परिस्थिति में समान रहना चाहिए। साथ ही तमाम समस्याओं से हताश होने की जगह उससे लड़ने का प्रयास करना चाहिए।

शेषनाग पर ही क्यों सोते हैं श्री हरि?

वहीं, शेषनाग की शैय्या पर नारायण के विराजमान होने के पीछे कई कथाएं भी प्रचलित हैं, जिनमें से एक का जिक्र हम करेंगे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान शिव धरती का भ्रमण करने निकले थे, तब उन्होंने देखा कि संसार में हर कोई किसी न किसी प्रकार के दुख से परेशान है और वह अपनी परिस्थितियों को कोस रहा है। पृथ्वी पर हर तरफ निराशा देखकर शिव जी ने श्री हरि का आवाहन किया और फिर से पूरे जगत में सकारात्मकता, खुशी और साहस का संचार करने के लिए कहा।

भोलेनाथ की बात सुनकर विष्णु जी ने शेषनाग का आवाहन किया और उन पर शयन की मुद्रा में विराजमान हो गए, जिससे लोगों को यह संदेश पहुंचे कि कैसे समस्याओं से भयभीत होने के बजाय उसका सामना करना चाहिए और उनसे बाहर निकलने का अन्य मार्ग खोजना चाहिए, जिससे व्यक्ति हर स्थिति में आनंदमयी रह सके।

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