"मकर का मिथक", जानिए इस जीव से जुड़ी कुछ रोचक और रहस्यमई बातें
वैदिक काल में मकर जीव का उल्लेख किया गया था। इस जीव को पवित्र नदी की देवी मां गंगा के वाहन रूप में जाना जाता है। आइए जानते हैं इस पौराणिक जीव से जुड़ी कुछ रहस्यमई और अनोखी बातें।
By Jagran NewsEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Tue, 31 Jan 2023 09:08 AM (IST)
शिवानी कसूमरा, मैप अकादमी; जलदेवता वरुण से लेकर मां गंगा के वाहन रहे मकर जैसी आकृति वाले जीव का आखिर क्या है रहस्य? तमाम तीर्थस्थलों के सजावटी द्वारों से लेकर आभूषणों में नजर आने वाली यह आकृति भारत ही नहीं बल्कि नेपाल और श्रीलंका के मंदिरों में भी नजर आती है...
भारत के बौद्ध और हिंदू धर्मों की मौखिक, पाठ्य और दृश्य परंपराओं में पाए जाने वाले सभी जीवों में मकर सर्वाधिक उल्लेखनीय है। मकर का शाब्दिक अर्थ 'समुद्री राक्षस' बताया गया है। हालांकि, मकर आम समुद्री जीवों जैसा नहीं है, यह स्थलीय और जलीय स्तनपायी के बीच का संकर वर्ण वाला जीव है। मकर की समग्र प्रकृति इसके आकार में परिलक्षित होती है, जिसमें आमतौर पर इसके शरीर के अग्र भाग को हाथी या हिरण जैसा और पिछला भाग को मछली, मगरमच्छ या सांप के रूप में चित्रित किया जाता है।
इस प्रकार मिला स्थान
मकर का सबसे शुरुआती उल्लेख वरुण के साथ मिलता है, जो कि मित्र और आर्यमन के साथ वैदिक काल के सबसे प्राचीन देवताओं में से एक हैं। तीनों देवता वैदिक काल में प्रभुत्व रखते थे। वरुण अकेले न्याय और सत्य के स्वामी थे, जो पृथ्वी और आकाश पर स्वामित्व रखते थे और जिन्हें इस सृष्टि का निर्माता माना जाता था। बाद में इन तीनों का स्थान अन्य तीन वैदिक देवताओं अर्थात् अग्नि, इंद्र और सूर्य ने ले लिया। वरुण को सृष्टि के शासन से स्थानांतरित कर दिया गया और वह महासागरों के देवता बन गए। महासागरों के देवता के रूप में उनका वाहन मकर बना।शुभ प्रतीकों में से एक
वरुण के साथ वैदिक संकलन के बाद मकर का पौराणिक ग्रंथों में पवित्र नदी की देवी गंगा के वाहन के रूप में उल्लेख होता है। यहां मकर के पास मगरमच्छ का सिर और डाल्फिन की पूंछ है। इस रूप में मकर को पूज्य और पवित्र राक्षसों के समान माना गया। उसे मंदिरों के रक्षक के रूप में मंदिर वास्तुकला में शामिल किया गया। मकर को एक शुभ प्रतीक के रूप में देखा गया, जो भक्तों को सुरक्षा प्रदान करता है, साथ ही मन में आतंक और भय भी पैदा करता है।
उकेरने में आसान
बलशाली स्वरूप के निरुपण के अलावा भी कुछ बातें यहां ध्यान देने योग्य हैं जैसे कि मकर के तुरही जैसे थूथन, गरुड़ीय शरीर और लहरदार पूंछ के कारण मकर की आकृति को मंदिरों, प्रवेशद्वारों, मेहराबों और कोष्ठकों पर होने वाले सजावटी निर्माण में सहजता से उकेरा जा सकता था। अक्सर पत्थर और कांस्य से गढ़ी मूर्तियों में हिंदू देवताओं जैसे विष्णु एवं शिव इत्यादि और देवी के विभिन्न अवतारों को मछली के आकार के कुंडलों को पहने दिखाया जाता है, जिन्हें 'मकरकुंडल' के नाम से जाना जाता है।विविध परंपराओं में मौजूद
बौद्ध और हिंदू तीर्थस्थलों पर अपने थूथन से पानी ले जाने वाली कई परनालियों की पहचान मकर के रूप में की गई है। बौद्ध स्मारकों में उन्हें सजावटी बहिद्वारों और पदकों में उद्भूत नक्काशी के रूप में शामिल किया गया है, जैसा सांची और भरहुत के स्तूपों में देखा जा सकता है। दक्षिणी और पूर्वी भारत के मंदिरों में मकर कीर्तिमुख के साथ दिखाई देता है, जो प्रवेश द्वार पर बने खंभों के शीर्ष पर भयंकर सिंह जैसी आकृति में मौजूद है। इसी दौरान, मुद्रित पांडुलिपियों में मकर फारसी और चीनी चित्रकला परंपराओं में चित्रित ड्रैगन से प्रभावित नजर आता है। पेंटिंग में दिखाए गए ड्रैगन की लंबाई और उसके घुमावदार आकार को काफी छोटा कर दिया गया है ताकि वह मूर्तियों पर देखे गए मकर के अनुरूप हो सके। इसका आकार और रूप पशुओं के अवलोकन से भी प्रभावित नजर आता है। इसमें भारतीय मगरमच्छ, गंगा नदी की डाल्फिन और हाथी की शारीरिक संरचना को समुद्री ड्रैगन के शानदार अनुपात के साथ जोड़ा गया है। हिंदी भाषा में मगरमच्छ शब्द में, जो 'मगर' है, वह मकर ही से आता है।