Nag Panchami 2022 Katha: क्यों मनाया जाता है नाग पंचमी का पर्व? जानिए पौराणिक कथा
Nag Panchami 2022 Katha आज देशभर में नाग पंचमी का त्योहार बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। आज के दिन सांप को दूध पिलाने की परंपरा भी है। जानिए आखिर नाग पंचमी का पर्व क्यों मनाया जाता है।
नई दिल्ली, Nag Panchami 2022 Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का पर्व हर साल मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ नाग देवता की पूजा करने का विधान है। इस दिन पूजा करने से कुंडली से कालसर्प दोष के साथ-साथ राहु-केतु के दुष्प्रभाव कम हो जाते है। इसके साथ ही सांपों से संबंधित हर तरह का भय खत्म हो जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर नाग पंचमी पर्व की शुरुआत कैसे हुई। आइए जानते हैं नागपंचमी शुरू होने की पौराणिक कथा।
नाग पंचमी शुरू होने की पौराणिक कथा
नाग पंचमी मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित है। इनमें से तीन खास कथाएं बता रहे हैं।
भविष्य पुराण के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान नागों ने अपनी माता की बात नहीं मानी थी जिसके चलते उन्हें श्राप मिला था। नागों को कहा गया था कि वो जनमेजय के यज्ञ में जलकर भस्म हो जाएंगे। घबराए हुए नाग ब्रह्माजी की शरण में पहुंच गए और उनसे मदद मांगने लगे। तब ब्रह्माजी ने कहा कि नागवंश में महात्मा जरत्कारु के पुत्र आस्तिक सभी नागों की रक्षा करेंगे। ब्रह्मा जी ने यह उपाय पंचमी तिथि को ही बताया था। वहीं, आस्तिक मुनि ने सावन मास की पंचमी तिथि को नागों के ऊपर दूध डालकर उन्हें यज्ञ में जलने से बचाया था। तब से लेकर आज से नाग पंचमी का पर्व मनाया जाता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब समुद्र मंथन हुआ था तब किसी को भी रस्सी नहीं मिल रही थी। इस समय वासुकि नाग को रस्सी की तरह इस्तेमाल किया गया था। जहां देवताओं ने वासुकी नाग की पूंछ पकड़ी थी वहीं, दानवों ने उनका मुंह पकड़ा था। मंथन में पहले विष निकला था जिसे शिव भगवान में अपने कंठ में धारण किया था और समस्त लोकों की रक्षा की थी। वहीं, मंथन से जब अमृत निकला तो देवताओं ने इसे पीकर अमरत्व को प्राप्त किया। इसके बाद से ही इस तिथि को नाग पंचमी के पर्व के तौर पर मनाया जाता है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही भगवान श्री कृष्ण ने वृंदावन के लोगों की जानक नाग को हराकर बचाई थी। श्री कृष्ण भगवान ने सांप के फन पर नृत्य किया था। जिसके बाद वो नथैया कहलाए थे। तब से ही नागों की पूजा की परंपरा चली आ रही है।
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