'भला ऐसे कौन-से गुण हैं शिवगण नंदी में, जो महादेव उनकी बात को अनसुना नहीं कर पाते?
नंदी ने कहा- मेरे स्वामी ने प्याला भर विष पान किया। क्या मैं सेवक होकर कुछ बूंदें ग्रहण नहीं कर सकता? जगत के त्राण और कल्याण में क्या इतना भी सहयोग नहीं दे सकता? सो ऐसी है नंदी की अतुलनीय सेवा-निष्ठा!
श्री आशुतोष महाराज जी। कैलाश के पवित्र शिखर पर महादेव ध्यानस्थ थे। नंदी ने सोचा- 'किसी महान लक्ष्य को साधने हेतु मेरे महादेव समाधि में स्थित हैं। मुझे भी सहयोग देना चाहिए।' नंदी ने महादेव के समक्ष धरा पर एक आसन बिछाया और वह भी ध्यान-साधना में बैठ गए। उनके हृदय के सूक्ष्म तार महादेव की ब्रह्मचेतना से जुडऩे लगे। कुछ समय बाद दुष्ट जालंधर छल-बल से देवी पार्वती का अपहरण करके ले गया। शिवगण व्याकुल हो उठे। उन्होंने निर्णय लिया कि इस दुर्घटना की सूचना महादेव को दी जाए। परंतु कैसे? महादेव तो गहन समाधि में लीन थे। ऐसे में, बुद्धि-विवेक के देवता श्री गणपति को युक्ति सूझी। उन्होंने महादेव के परम गण नंदी को साधन बनाया। ध्यान में लीन नंदी के कान में सारी दुर्घटना कह दी। इधर नंदी के कान में सूचना गई, उधर भगवान के नेत्र तुरंत खुल गए।
कैसा अद्भुत सूक्ष्म जुड़ाव था- भक्त और भगवान का! मान्यता है कि तभी से इस पौराणिक घटना ने एक आराधना पद्धति या प्रथा का रूप ले लिया। आज अनेक शिव-मंदिर इस प्रकार निर्मित हैं, जिनमें महादेव या शिवलिंग के ठीक सामने नंदी की प्रतिमा होती है। भक्तजन अपनी मनोकामना नंदी के कान में कहते हैं। मान्यता है कि वह कामना सीधे भगवान शिव तक संप्रेषित हो जाती है।
मन में जिज्ञासा उठती है- 'भला ऐसे कौन-से गुण हैं शिवगण नंदी में, जो महादेव उनकी बात को अनसुना नहीं कर पाते?' अनेक वर्षों पूर्व की घटना है। अपने पिता ऋषि शिलाद के द्वारा नंदी को यह पता चला कि वे अल्पायु हैं। समस्या है, तो समाधान भी होगा। यही विचार कर नंदी भुवन नदी के किनारे साधना करने लगे। जब एक कोटि सुमिरन पूर्ण हुए, तो महादेव प्रकट हो गए। परंतु नंदी साधना में इतने मग्न थे कि महादेव से वर मांगने का उन्हें भान ही नहीं रहा। उन्हें साधनारत छोड़कर महादेव अंतर्धान हो गए। ऐसा ही एक बार और हुआ। तृतीय बार जब महादेव प्रकट हुए, उन्होंने ही अपना वरद हस्त उठाकर नंदी को वर-प्राप्ति के लिए प्रेरित किया। उस समय भी नंदी ने दीर्घ आयु का वर नहीं मांगा। अपनी अखंड साधना का एक ही फल चाहा। केवल महादेव का सान्निध्य! नंदी बोले, 'हे महादेव! मुझे अपनी अलौकिक संगति का वर दें। मैं दास भाव से सदा आपके संग रहना चाहता हूं।' महादेव का हृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने प्रसन्न होकर नंदी को अपना अविनाशी वाहन और परम गण घोषित कर दिया। कारण? वाहन का समर्पण अद्वितीय होता है। नंदी का मन इतना समर्पित है कि शिव चेतना सदा उस पर आरूढ़ रहती है। नंदी की अपनी कोई इच्छा, मति, आकांक्षा नहीं। नंदी शिव की इच्छा, आज्ञा और आदर्शों के वाहक हैं। इसलिए वे शिव के वाहन है।
नंदी की भक्ति-साधना और समर्पण तो अनुपम है ही, उनकी सेवा या कर्म-शौर्य का भी पुराणों में विशेष वर्णन मिलता है। समुद्र-मंथन के दौरान एक असाधारण घटना घटी! जब हलाहल विष निकला, तो संसार के त्राण के लिए महादेव को उसका पान करना पड़ा। परंतु विषपान करते हुए विष की कुछ बूंदें धरा पर गिर गईं। इन बूंदों के कुप्रभाव से पृथ्वी त्राहि-त्राहि करने लगी। पर तभी नंदी आगे बढ़े और अपनी जिह्वा से उन विष-बिंदुओं को चाट लिया। देवों ने व्यग्र होकर कारण पूछा। नंदी ने कहा- 'मेरे स्वामी ने प्याला भर विष पान किया। क्या मैं सेवक होकर कुछ बूंदें ग्रहण नहीं कर सकता? जगत के त्राण और कल्याण में क्या इतना भी सहयोग नहीं दे सकता?' सो, ऐसी है नंदी की अतुलनीय सेवा-निष्ठा! इसीलिए नंदी शिव के अभिन्न गण हैं और सदैव महादेव शिव के अंग-संग या सम्मुख रहते हैं।
[संस्थापक, दिव्य ज्योति जागृति संस्थान]