Narmada Jayanti 2024: नर्मदा जयंती पर करें इस स्तोत्र का पाठ, मिलेगा धन और वैभव का आशीर्वाद
माता नर्मदा की पूजा से लोगों के बड़े से बड़े पाप क्षण भर में समाप्त हो जाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार नर्मदा जयंती (Narmada Jayanti 2024) हर साल माघ माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है। इस साल यह 16 फरवरी 2024 दिन शुक्रवार यानी आज मनाई जा रही है। तो आइए इस खास मौके पर श्री नर्मदा अष्टकम स्तोत्र का पाठ करते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Narmada Jayanti 2024: हिंदू धर्म में देवी नर्मदा की पूजा बहुत ही शुभ मानी गई है। ऐसा माना जाता है कि उनकी उपासना से लोगों के बड़े से बड़े पाप क्षण भर में समाप्त हो जाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, नर्मदा जयंती हर साल माघ माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है। इस साल यह 16 फरवरी, 2024 दिन शुक्रवार यानी आज मनाई जा रही है। तो आइए इस खास मौके पर श्री नर्मदा अष्टकम स्तोत्र का पाठ करते हैं, जो इस प्रकार है -
॥ श्री नर्मदा अष्टकम ॥
सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम
द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम
कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥1॥
त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम
कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं
सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥2॥
महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं
ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम
जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥3॥
गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा
मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा
पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥4॥
अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं
सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥5॥
सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपात्रि षटपदै
धृतम स्वकीय मानषेशु नारदादि षटपदै:
रविन्दु रन्ति देवदेव राजकर्म शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥6॥
अलक्षलक्ष लक्षपाप लक्ष सार सायुधं
ततस्तु जीवजंतु तंतु भुक्तिमुक्ति दायकं
विरन्ची विष्णु शंकरं स्वकीयधाम वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥7॥
अहोमृतम श्रुवन श्रुतम महेषकेश जातटे
किरात सूत वाड़वेषु पण्डिते शठे नटे
दुरंत पाप ताप हारि सर्वजंतु शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥8॥
इदन्तु नर्मदाष्टकम त्रिकलामेव ये सदा
पठन्ति ते निरंतरम न यान्ति दुर्गतिम कदा
सुलभ्य देव दुर्लभं महेशधाम गौरवम
पुनर्भवा नरा न वै त्रिलोकयंती रौरवम ॥9॥
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे॥
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