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Nath Sampradaya: 11 वीं सदी में हुई थी बाबा बालकनाथ के संप्रदाय की उत्पत्ति, जानें-इसका इतिहास

Nath Sampradaya नाथ संप्रदाय के अनुयायी भगवान शिव की कठिन भक्ति करते हैं। वे भगवान शिव को परम मानते हैं। साथ ही हठ योग के जरिए शिव की उपासना करते हैं। अतः इनकी विचारधारा सात्विक होती है। साथ ही वेशभूषा भी योगी समान होता है। ये भगवे रंग के वस्त्र धारण करते हैं। इनके वस्त्र में कोई बंधन नहीं होता है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 05 Dec 2023 07:15 PM (IST)
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Nath Sampradaya: 11 वीं सदी में हुई थी बाबा बालकनाथ के संप्रदाय की उत्पत्ति, जानें-इसका इतिहास
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Nath Sampradaya: सनातन धर्म में शिव के उपासक को शैव कहा जाता है। वहीं, विष्णु के उपासक को वैष्णव कहा जाता है। आरण्य सभ्यता से भगवान शिव की पूजा की जाती है। तंत्र सीखने वाले साधक भगवान शिव के भैरव रूप की पूजा करते हैं। शिव अनादि हैं। भगवान शिव ने संपूर्ण ब्रह्मांड का आवरण किया है। शास्त्रों में भगवान शिव को अविनाशी बताया गया है। भगवान शिव के उपासकों में नाथ संप्रदाय की गिनती शीर्ष में होती है। इस पंथ के अनुयायी भगवान शिव को अपना गुरु मानते हैं। आइए, नाथ संप्रदाय के बारे में सबकुछ जानते हैं-

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नाथ संप्रदाय क्या है ?

जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण ने पवित्र ग्रंथ 'गीता' के छठे अध्याय में अपने शिष्य अर्जुन को ध्यान योग के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। नाथ संप्रदाय के अनुयायी भी हठ योगी होते हैं। इस संप्रदाय के अनुयायी हठ साधना करते हैं। भगवान शिव पहले योगी थे। अतः नाथ संप्रदाय के साधक योगी कहलाते हैं। इस संप्रदाय के संस्थापक गुरु गोरखनाथ थे। उन्होंने ही नाथ संप्रदाय का एकत्रीकरण किया था। नाथ संप्रदाय के अन्य प्रमुख गुरु मच्छेन्द्रनाथ थे। इतिहासकारों की मानें तो 8 वीं सदी में गुरु मच्छेन्द्रनाथ ने हठ योग को गति दी थी। इसके पश्चात, गुरु गोरखनाथ ने 11 वीं सदी में नाथ संप्रदाय को एकत्र किया था। ऐसा कहा जाता है कि तत्कालीन समय से मठवादी विचारधारा का उद्धभव हुआ है।

साधना पद्धति

नाथ संप्रदाय के अनुयायी भगवान शिव की कठिन भक्ति करते हैं। वे भगवान शिव को परम मानते हैं। साथ ही हठ योग के जरिए शिव की उपासना करते हैं। अतः इनकी विचारधारा सात्विक होती है। साथ ही वेशभूषा भी योगी समान होता है। ये भगवे रंग के वस्त्र धारण करते हैं। इनके वस्त्र में कोई बंधन नहीं होता है। आसान शब्दों में कहें तो ये सिले वस्त्र नहीं धारण करते हैं। नाथ संप्रदाय के अनुयायी जनेऊ और कानों में कुंडल धारण करते हैं। ये एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में चिमटा रखते हैं। ये भिक्षा मांगकर जीवन यापन करते हैं। साथ ही आठों प्रहर शिव सुमिरन करते हैं।

दीक्षा

नाथ संप्रदाय में सभी वर्गों को विशेष स्थान प्राप्त है। आसान शब्दों में कहें तो किसी भी धर्म या पंथ के लोग सन्यासी बन सकते हैं। हालांकि, इसके लिए सन्यासी को सभी प्रकार के मोह से विमुक्त रहना पड़ता है। इस अवस्था में व्यक्ति को एक दशक तक कठिन परीक्षा से गुजरना होता है। इसके पश्चात ही व्यक्ति को दीक्षा दी जाती है। दीक्षा पाने के बाद व्यक्ति को जीवन पर्यंत तक हठ योग के नियमों का पालन करना होता है। भिक्षा में धन लेने की मनाही होती है। योगी केवल अनाज और वस्त्र ही भिक्षा में प्राप्त कर सकते हैं। वर्तमान समय में योगी आदित्यनाथ और बाबा बालकनाथ नाथ संप्रदाय के अनुयायी हैं।  

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