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Navadha Bhakti: भक्ति से साधक का जीवन होता है खुशहाल, जानें इसके मुख्य प्रकार

सनातन धर्म में साधक जीवन में खुशियों के आगमन के लिए कई तरह के उपाय करता है जिससे शुभ फल की प्राप्ति होती है और उसे एवं उसके परिवार को सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। इसके अलावा लोग भक्ति (Navadha Bhakti in Hindi) के मार्ग को भी अपनातें हैं। इसके द्वारा भक्त (Devotee) को प्रभु की कृपा प्राप्त होती है।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Tue, 15 Oct 2024 03:43 PM (IST)
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Navadha Bhakti: भक्ति करने से प्रभु से होता है मिलन (Pic Credit-Freepik)

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन शास्त्रों में भक्ति के बारे में विशेष वर्णन देखने को मिलता है। शास्त्रों में नवधा भक्ति का उल्लेख किया गया है और इसके महत्व को समझाया गया है। मान्यता है कि सतयुग में प्रह्लाद और त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने नवधा भक्ति (Navadha Bhakti Definition) से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में विशेष जिक्र किया है। वहीं, प्रभु राम ने माता शबरी को नवधा भक्ति (9 forms of Devotion in Ramayana) करने का उपदेश दिया था। इस भक्ति का उल्लेख भागवत पुराण के सातवें स्कंध के पांचवे अध्याय में किया गया है। आइए इस लेख में हम आपको बताएंगे कि नवधा भक्ति (Bhakti Types) के कौन-कौन से प्रकार हैं और इनके महत्व के बारे में।

भागवत पुराण के इस श्लोक में किया गया है नवधा भक्ति का वर्णन

श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।

अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥

इतने प्रकार की होती है भक्ति

1. श्रवण (Shravan) - यह भक्ति जातक को ईश्वर के चरित्र और उनकी लीला की कथा का पाठ करना सिखाती है। इसके अलावा श्रवण भक्ति में भजन-कीर्तन करना शामिल है।

2. कीर्तन (Kirtan) - इस भक्ति में देवी-देवता के गुणों का जप विधिपूर्वक करना चाहिए। साथ ही उनके गुणों को अपने जीवन में लाना चाहिए। इससे साधक का जीवन में खुशहाल हो सकता है।

3. स्मरण (Smaran) - इस भक्ति से लोगों को प्रभु का स्मरण करने की सीख मिलती है। स्मरण भक्ति में प्रभु का स्मरण करने के बारे में बताया गया है।

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4. पाद-सेवन (Paad-sevanan)- पाद-सेवन भक्ति उत्तम मानी जाती है। इस भक्ति में जातक को अपने आपको प्रभु को अर्पण कर देना चाहिए।

5. अर्चन (Arcanam)- जो साधक पवित्र सामग्री के द्वारा देवी-देवता की पूजा-अर्चना करता है। उसे अर्चन भक्ति कहते हैं।

6. वंदन(Vandana) - इसमें साधक को रोजाना आठ प्रहर की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। मान्यता है कि इससे भगवान की कृपा प्राप्त होती है।

7. दास्य (Dāsya)- भगवान को अपना स्वामी और खुद को उनका दास मानकर हर रोज पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

8. सख्य (Sakhya) - इस भक्ति में प्रभु को प्रिय मित्र समझकर अपना सब कुछ भगवान को अर्पित कर देना चाहिए।

9.आत्मनिवेदन (Ātma-nivedanam)- इस भक्ति में साधक को अपनी स्वतंत्रता का त्याग कर स्वयं को प्रभु को समर्पित करना होता है।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।