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Lord Shiva: इस वजह से भगवान शंकर ने किया था विषपान, जानें इसके पीछे की पौराणिक कथा

शास्त्रों में भगवान शिव की पूजा का विधान है। भगवान शिव की पूजा के लिए किसी तिथि व समय की आवश्यकता नहीं होती है। ऐसी मान्यता है कि जो लोग भगवान शंकर की पूजा करते हैं उन्हें सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही जीवन में शुभता आती है। ऐसे में नीलकंठ की पूजा सच्ची श्रद्धा के साथ करें।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Fri, 21 Jun 2024 04:08 PM (IST)
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Lord Shiva: गले में शिव जी ने क्यों धारण किया विष?

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा का खास महत्व है। उन्हें देवों के देव महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र और नीलकंठ आदि नामों से भी जाना जाता है। कई बार भक्तों के मन में यह सवाल आता है कि आखिर भोलेनाथ (Lord Shiva) को नीलकंठ क्यों कहा जाता है? हालांकि इसके पीछे का कारण काफी लोग जानते भी हैं।

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भगवान शिव ने क्यों किया था विषपान?

वेदों और ग्रंथों के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन हुआ था। इस मंथन के दौरान क्षीरसागर से कई दिव्य चीजें प्रकट हुईं, जिसे देवताओं और दानवों ने आपस में बराबर-बराबर बांट लिया। वहीं, इन चमत्कारी और बहुमूल्य वस्तुओं के साथ समुद्र मंथन से हलाहल विष भी निकला, जिसके प्रभाव से पूरे संसार में अंधेरा छा गया। इस विष के कहर को न तो देवताओं में सहने की क्षमता थी न ही असुरों में।

तब सभी न देवों के देव महादेव से मदद मांगी। इसके पश्चात उन्होंने संपूर्ण विष का पान स्वयं ही कर लिया। यह विष उन्होंने अपने गले में धारण किया। इस कारण उनका गला नीला पड़ गया और तभी से उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा।

गले में शिव जी ने क्यों धारण किया विष?

कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब शिव जी विषपान कर रहे थे, उस दौरान देवी पार्वती ने उनका गला दबाए रखा था, ताकि विष गले की नीचे न जा सके। इसी वजह से उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है - नीले गले वाला।

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