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Lord Shiva: हनुमान जी की तरह भगवान शिव ने भी धारण किया है पंचमुखी स्वरूप, जानिए रहस्य

Panchmukhi Shiv भगवान शिव सभी देवताओं में सबसे उच्च स्थान रखते हैं तभी उन्हें महादेव की उपाधि दी जाती है। भगवान शिव के रूद्रावतार के बारे में तो आपने सुना होगा लेकिन शायद ही आपने शिव जी के पंचमुखी अवतार के बारे में सुना हो। जी हां हनुमान जी की तरह ही भगवान शिव का भी पंचमुखी अवतार है जिसका वर्णन चार वेदों में से एक यजुर्वेद में मिलता है।

By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Fri, 08 Sep 2023 02:49 PM (IST)
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Panchmukhi Shiv जानिए शिव जी के पंचमुखी स्वरूप का रहस्य।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Lord Shiva Favourite Rashi: भगवान शिव के पंचमुखी स्वरूप के पांच मुख में अघोर, सद्योजात, तत्पुरुष, वामदेव और ईशान शामिल हैं। शिवजी के इन सभी मुख में तीन नेत्र भी हैं। इसी प्रकार शंकर जी के 11वें रुद्रावतार हनुमान जी के भी पांच मुख हैं। हनुमान जी को भगवान शिव का ही अवतार माना जाता है इसलिए शिव जी की शक्ति भी हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप में समाई हुई हैं।

भगवान शिव के पंचानन रूप की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने अत्यंत मनोहर किशोर रूप धारण किया। उनके इस मनमोहक रूप को देखने के लिए ब्रह्मा, शिवजी और अन्य देवतागण प्रकट हुए। उन सभी ने अपने अनेक मुखों से भगवान के इस रूप माधुर्य का आनंद लिया और प्रशंसा भी की। ये देख शिवजी सोचने लगे कि यदि मेरे भी अनेक मुख और नेत्र होते तो मैं भी भगवान के इस किशोर रूप का सबसे अधिक दर्शन करता जिससे मुझे भी अधिक आनंद का सौभाग्य प्राप्त होता।

शिवजी के मन में यह इच्छा की और उन्होंने पंचमुखी रूप धार। तभी से उन्हें पंचानन के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव के पंखमुखी रूप को लेकर शिवपुराण में भी वर्णन मिलता है जिसमें भगवान शिव कहते हैं कि सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह ये  पांच कृत्य या कार्य मेरे ही पांच मुखों द्वारा धारित हैं।

शिवजी के पंचमुख का महत्व

कहा जाता है कि भगवान शिव के पांच मुख में चार मुख चारों दिशाओं में और एक मध्य में है। भगवान शिव के पश्चिम दिशा का मुख सद्योजात बालक के समान स्वच्छ, शुद्ध व निर्विकार हैं। उत्तर दिशा का मुख वामदेव अर्थात विकारों का नाश करने वाला। दक्षिण मुख अघोर अर्थात निन्दित कर्म करने वाला।

वहीं, शिव जी के पूर्व मुख का नाम तत्पुरुष है जिसका अर्थ है अपनी आत्मा में स्थित रहना। ऊर्ध्व मुख का नाम ईशान है जिसका अर्थ होता है जगत का स्वामी। शिव जी का अघोर मुख इस बात की ओर इशारा करता है कि जगत में निन्दित कर्म करने वाला भी शिव की कृपा से निन्दित कर्म को शुद्ध बना लेता हैं।

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