Papankusha Ekadashi 2024: इस विधि से करें पापांकुशा एकादशी का पारण, नोट करें पूजा मुहूर्त और मंत्र
हिंदू धर्म में पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi 2024) का बड़ा धार्मिक महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है जो लोग इस दिन का व्रत रखते हैं उन्हें श्री हरि के साथ माता लक्ष्मी की कृपा मिलती है। वहीं अगर आप इस व्रत को रख रहे हैं तो आपको यहां दिए गए पारण नियम का पालन जरूर करना चाहिए क्योंकि तभी व्रत का पूरा फल मिलता है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म के प्रमुख व्रतों में से एक पापांकुशा एकादशी का व्रत है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है। इस शुभ दिन पर भगवान विष्णु की पूजा करने और उनके लिए कठोर उपवास रखने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। एकादशी माह में दो बार शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में आती है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi 2024) 13 अक्टूबर यानी आज मनाई जा रही है।
वहीं, जो लोग इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें इसके पारण नियम को अवश्य जानना चाहिए, क्योंकि सही तरीके से पारण का पालन करने से ही व्रत का पूरा फल मिलता है, तो चलिए जानते हैं।
पूजा मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, रवि योग सुबह 06 बजकर 21 मिनट से अगले दिन देर रात 02 बजकर 51 मिनट तक रहेगा। वहीं, विजय मुहूर्त - दोपहर 02 बजकर 02 मिनट से 02 बजकर 49 मिनट तक रहेगा। गोधूलि मुहूर्त शाम 05 बजकर 53 मिनट से 06 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। वहीं, निशिता मुहूर्त रात्रि 11 बजकर 42 मिनट से 12 बजकर 23 मिनट तक रहेगा।
पापांकुशा एकादशी पारण विधि
ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें। मंदिर को साफ करें, जहां आपने वेदी स्थापित की हो। श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करें। गोपी चंदन और हल्दी का तिलक लगाएं। देसी घी का दीया जलाएं। पीले फूलों की माला अर्पित करें। घर में बनी हुई मिठाइयों का भोग लगाएं। पूजा में तुलसी पत्र अवश्य शामिल करें। 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का 108 बार जाप करें। भाव के साथ आरती करें। अंत में शंखनाद करें।
व्रत का पारण सात्विक भोजन और प्रसाद से करें। बता दें, एकादशी का व्रत द्वादशी तिथि को खोला जाता है, इसलिए द्वादशी तिथि के दिन भोर में अपना व्रत खोलें।
भगवान विष्णु के प्रार्थना मंत्र
1. ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि''।
2. ''शांताकारम भुजङ्गशयनम पद्मनाभं सुरेशम।
विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम।
लक्ष्मी कान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म।
वन्दे विष्णुम भवभयहरं सर्व लोकेकनाथम''।
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