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Parivartini Ekadashi 2024: परिवर्तिनी एकादशी के दिन करें इस स्तोत्र का पाठ, खुशियों से भर जाएगा आपका जीवन

परिवर्तिनी एकादशी का व्रत हिंदुओं में बेहद पुण्यदायी माना जाता है। इस उपवास को रखने से सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। साथ ही श्री हरि विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस साल यह व्रत (Parivartini Ekadashi 2024) 14 सितंबर 2024 को रखा जाएगा। वहीं इस दिन श्री राधा कृष्ण स्तोत्र का पाठ परम कल्याणकारी माना गया है।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sun, 08 Sep 2024 02:37 PM (IST)
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Parivartini Ekadashi 2024: श्री राधा कृष्ण स्तोत्र का पाठ।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। परिवर्तिनी एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा महत्व है। इस दिन भक्त श्रीहरि की पूजा विधिवत करते हैं और उनके लिए कठिन उपवास का पालन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान ( Parivartini Ekadashi 2024) व्रत रखने से धन और सुख की प्राप्ति होती है। साथ ही संसार की समस्त चिंताओं से मुक्ति मिलती है। वहीं, इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा का भी विशेष महत्व है। 

ऐसा कहा जाता है कि जो लोग इस दौरान श्रीजी संग कृष्ण भगवान की आराधना करते हैं और ''श्री राधा कृष्ण स्तोत्र'' का पाठ करते हैं, उन्हें सुख और शांति की प्राप्ति होती है।

।।श्री राधा कृष्ण स्तोत्र।।

वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससम् ।

सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम् ॥

राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतम् ।

राधासेवितपादाब्जं राधावक्षस्थलस्थितम् ॥

राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम् ।

राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम् ॥

राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम् ।

राधासहचरं शश्वत् राधाज्ञापरिपालकम् ॥

ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्च यम् ।

तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम् ॥

निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम् ।

नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम् ॥

यः सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम् ।

योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ॥

बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणम् ।

वेदवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम् ॥

योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ।

गन्धर्वेण कृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।

इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम् ॥

हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोकं च निरामयम् ।

पार्षदप्रवरत्वं च लभते नात्र संशयः ॥

।।श्रीकृष्ण स्तुति।।

भये प्रगट कृपाला दीन दयाला,यशुमति के हितकारी, हर्षित महतारी रूप निहारी, मोहन मदन मुरारी।

कंसासुर जाना अति भय माना, पूतना बेगि पठाई, सो मन मुसुकाई हर्षित धाई, गई जहां जदुराई।

तेहि जाइ उठाई ह्रदय लगाई, पयोधर मुख में दीन्हें, तब कृष्ण कन्हाई मन मुसुकाई, प्राण तासु हरि लीन्हें।

जब इन्द्र रिसाये मेघ बुलाये, वशीकरण ब्रज सारी, गौवन हितकारी मुनि मन हारी, नखपर गिरिवर धारी।

कंसासुर मारे अति हंकारे, वत्सासुर संहारे, बक्कासुर आयो बहुत डरायो, ताकर बदन बिडारे।

अति दीन जानि प्रभु चक्रपाणी, ताहि दीन निज लोका, ब्रह्मासुर राई अति सुख पाई, मगन हुए गए शोका।

यह छन्द अनूपा है रस रूपा, जो नर याको गावै, तेहि सम नहिं कोई त्रिभुवन मांहीं, मन-वांछित फल पावै।

दोहा- नन्द यशोदा तप कियो, मोहन सो मन लाय तासों हरि तिन्ह सुख दियो, बाल भाव दिखलाय।

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