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Parivartini Ekadashi 2024: परिवर्तिनी एकादशी के दिन इस कथा का जरूर करें पाठ, तभी मिलेगा व्रत का फल

परिवर्तिनी एकादशी का व्रत (Parivartini Ekadashi 2024 Vrat Kath) बेहद पुण्यदायी माना जाता है। इस उपवास को रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही पापों का नाश होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है। पंचांग को देखते हुए इस बार यह व्रत 14 सितंबर यानी आज रखा जा रहा है।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sat, 14 Sep 2024 09:45 AM (IST)
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Parivartini Ekadashi 2024 Vrat Kath : परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। प्रत्येक एकादशी का हिंदू धर्म में महत्व है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार और भगवान गणेश की पूजा का विधान है। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से सभी पापों का अंत हो जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल यह व्रत (Parivartini Ekadashi 2024 Subh Muhurat) आज यानी 14 सितंबर, 2024 को रखा जा रहा है, जब यह पर्व इतना करीब है, तो आइए इसकी व्रत कथा (Parivartini Ekadashi 2024 Vrat Kath) के बारे में जानते हैं, जो यहां पर दी गई है।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा (Parivartini Ekadashi 2024 Vrat Kath In Hindi)

युधिष्ठिर कहने लगे कि हे प्रभु! भाद्रपद शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा इसका महिमा कृपा करके हमें बताइए। तब भगवान कृष्ण ने कहा कि सभी पापों का नाश करने वाली, उत्तम वामन एकादशी की महिमा मैं तुमसे कहता हूं, तुम इसे ध्यानपूर्वक सुनो। यह पद्मा/परिवर्तिनी एकादशी जयंती एकादशी भी कहलाती है। इसका यज्ञ करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। पापियों के पाप नाश करने के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं, जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। अत: मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य इस व्रत को जरूर करें।

जो कमलनयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं, जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी को उपवास और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान श्री हरि करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है।

मुरलीधर के वचनों को सुनकर युधिष्ठिर बोले कि भगवान! मुझे अतिसंदेह हो रहा है कि आप किस प्रकार सोते और करवट लेते हैं तथा किस तरह राजा बलि को बांधा और वामन रूप रखकर क्या-क्या लीलाएं कीं? चातुर्मास के व्रत की क्या विधि है तथा आपके शयन करने पर मनुष्य का क्या कर्तव्य है। इसे आप मुझसे विस्तार से बताइए। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि हे राजन! अब आप सब पापों को नष्ट करने वाली कथा का श्रवण करें। त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था। वह मेरा परम भक्त था। विविध प्रकार के वेद सूक्तों से मेरा पूजन किया करता था और नित्य ही ब्राह्मणों का पूजन तथा यज्ञ के आयोजन करता था, लेकिन इंद्र से द्वेष के कारण उसने इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया।

इस कारण सभी देवता एकत्र होकर सोच-विचारकर भगवान के पास गए। बृहस्पति सहित इंद्रादिक देवता प्रभु के निकट जाकर और नतमस्तक होकर वेद मंत्रों द्वारा भगवान का पूजन और स्तुति करने लगे। अत: मैंने वामन रूप धारण करके पांचवां अवतार लिया और फिर अत्यंत तेजस्वी रूप से राजा बलि को जीत लिया। इतनी वार्ता सुनकर राजा युधिष्ठिर बोले कि हे जनार्दन! आपने वामन रूप धारण करके उस महाबली दैत्य को किस प्रकार जीता? तब भगवान कृष्ण कहने लगे कि मैंने बलि से तीन पग भूमि की याचना करते हुए कहा कि 'ये मुझको तीन लोक के समान है और हे राजन यह तुमको अवश्य ही देनी होगी।'

राजा बलि ने इसे तुच्छ याचना समझकर तीन पग भूमि का संकल्प मुझको दे दिया और मैंने अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ाकर यहां तक कि भूलोक में पद, भुवर्लोक में जंघा, स्वर्गलोक में कमर, महलोक में पेट, जनलोक में हृदय, यमलोक में कंठ की स्थापना कर सत्यलोक में मुख, उसके ऊपर मस्तक स्थापित किया। सूर्य, चंद्रमा आदि सब ग्रह गण, योग, नक्षत्र, इंद्रादिक देवता और शेष आदि सब नागगणों ने विविध प्रकार से वेद सूक्तों से प्रार्थना की। तब मैंने राजा बलि का हाथ पकड़कर कहा कि हे राजन! एक पद से पृथ्वी, दूसरे से स्वर्गलोक पूर्ण हो गए। अब तीसरा पग कहां रखूं?

तब बलि ने अपना सिर झुका लिया और मैंने अपना पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे मेरा वह भक्त पाताल को चला गया। फिर उसकी विनती और नम्रता को देखकर मैंने कहा कि हे बलि! मैं सदैव तुम्हारे निकट ही रहूंगा। विरोचन पुत्र बलि से कहने पर भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन बलि के आश्रम पर मेरी मूर्ति स्थापित हुई। इसी प्रकार दूसरी क्षीरसागर में शेषनाग के पष्ठ पर हुई! हे राजन! इस एकादशी को भगवान शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसलिए तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु का उस दिन पूजन करना चाहिए। इस दिन तांबा, चांदी, चावल और दही का दान करना उचित है।

इसके साथ ही रात्रि को जागरण अवश्य करना चाहिए, जो विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चंद्रमा के समान प्रकाशित होते हैं और यश पाते हैं, जो साधक इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उनको हजार अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है और श्री हरि की कृपा सदैव के लिए प्राप्त होती है।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।