Pauranik Kathayen: कैसे हुई थी चंद्र देव की उत्पत्ति, पढ़ें इससे जुड़ी तीन प्रचलित कथाएं
Pauranik Kathayen मत्स्य एवं अग्नि पुराण के अनुसार जब सृष्टि रचने का विचार ब्रह्मा जी के मन में आया तो सबसे पहले उन्होंने मानस पुत्रों की रचना की। ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में से एक ऋषि अत्रि थे जिनका विवाह ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से संपन्न हुआ था।
By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Thu, 29 Oct 2020 11:01 AM (IST)
Pauranik Kathayen: मत्स्य एवं अग्नि पुराण के अनुसार, जब सृष्टि रचने का विचार ब्रह्मा जी के मन में आया तो सबसे पहले उन्होंने मानस पुत्रों की रचना की। ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में से एक ऋषि अत्रि थे जिनका विवाह ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से संपन्न हुआ था। ऋषि अत्रि और अनुसुइया के तीन पुत्र हुए जिनमें दुर्वासा, दत्तात्रेय व सोम थे। चंद्र का एक नाम सोम भी है।
पद्म पुराण में चंद्र की उत्पत्ति को लेकर एक अन्य कथा बताई गई है। ब्रह्मा जी ने अपने मानस पुत्र ऋषि अत्रि को सृष्टि का विस्तार करने की आज्ञा दी। इसके लिए अत्रि ने अनुत्तर नाम का तप आरंभ किया। तप के दौरान अत्रि के नेत्रों से जल की बूंदें टपक रही थीं जिनमें बेहद प्रकाश था। इन बूंदों को दिशाओं ने स्त्री रूप में आकर ग्रहण किया जिससे उन्हें पुत्र प्राप्ति हो। ये बूंदें उदर में गर्भ रूप में स्थित हो गईं। लेकिन उस प्रकाशमान गर्भ को दिशाएं धारण नहीं कर पाईं। इसके चलते उन्होंने उसे त्याग कर दिया। उस गर्भ को ब्रह्मा जी ने पुरूष का रूप दिया। यह पुरूष चंद्रमा नाम से प्रसिद्ध हुआ। सभी ने उनकी स्तुति की। सिर्फ इतना ही नहीं, चंद्रमा के तेज से पृथ्वी पर दिव्य औषधियां उत्पन्न हुईं। इन्हें ब्रह्मा जी द्वारा नक्षत्र, वनस्पतियों, ब्राह्मण व तप का स्वामी नियुक्त किया गया।
स्कंद पुराण में भी इसके लिए एक कथा दी गई है जिसके अनुसार, सागर मंथन के दौरान चौदह रत्न निकले थे। इन्हीं में से एक चंद्रमा भी था। इन्हें शिव जी ने तब अपने मस्तक पर धारण किया था। जब सागर मंथन के दौरान शंकर जी ने कालकूट विष पी लिया था तब उन्होंने अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण किया था। चंद्र की उपस्थिति ग्रह के रूप में सागर मंथन के बाद ही सिद्ध हुई थी।
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