Paush Purnima 2024: पौष पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण कथा करने से मिलती है कष्टों से मुक्ति, यहां जानें महत्व
Satyanarayan Katha on Paush Purnima सनातन धर्म में पूर्णिमा तिथि को बहुत-ही महत्वपूर्ण माना गया है। यह तिथि मुख्यतः भगवान विष्णु के पूजन के लिए समर्पित मानी गई है। कई साधक इस तिथि पर भगवान विष्णु के निमित्त व्रत आदि भी करते हैं। इसके साथ ही पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण की कथा का पाठ करना बहुत-ही शुभ माना गया है। आइए पढ़ते हैं संक्षिप्त रूप में श्री सत्यनारायण कथा।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shri Satyanarayan Katha: पंचांग के अनुसार, पौष माह में 25 जनवरी 2024, गुरुवार के दिन साल की पहली पूर्णिमा पड़ रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पौष पूर्णिमा के दिन स्नान, दान और धर्म-कर्म के कार्यों को करने से साधक को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण का व्रत और कथा करने से साधक को सभी दुख-दर्द दूर हो सकते हैं।
सत्यनारायण कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार नारद जी ने मृत्युलोक पर भ्रमण करते हुए देखा कि प्राणियों को अपने-अपने कर्मों के अनुसार, तरह-तरह के दुखों झेलने पड़ रहे हैं। इससे दुखी होकर वह क्षीरसागर में भगवान विष्णु के समक्ष पहुंचे और उनसे इन दुखों के निवारण का उपाय पूछने लगें। इस पर प्रभु श्री हरि ने कहा कि ‘हे वत्स! तुमने विश्वकल्याण के हेतु बहुत-ही उत्तम प्रश्न किया है। अत: आज मैं तुम्हें एक ऐसा श्रेष्ठ व्रत बताऊंगा, जो महान पुण्य दायक है तथा सभी प्रकार के मोह-बंधनों को काट देने वाला है। यह वह है श्री सत्यनारायण व्रत। इसे जो भी साधक पूरे विधि-विधान से करता है, वह सांसारिक सुख भोग कर परलोक में मोक्ष को प्राप्त करता है। अतः इसे ध्यान से सुनिए
एक बार की बात है काशीपुर नगर के एक दीन ब्राह्मण भिक्षा के लिए भूख-प्यास से परेशान वह धरती पर घूमता रहता था यह देख भगवान विष्णु स्वयं ही एक बूढ़े ब्राह्मण के रूप प्रकट हो गए और उसे ब्राह्मण से पूछा - हे विप्र! नित्य दुखी होकर तुम पृथ्वी पर क्यों घूमते हो? निर्धन ब्राह्मण बोला, मैं भिक्षा के लिए धरती पर घूमता हूं। हे भगवन! यदि आप इसका कोई उपाय हो तो मुझे बताइए। इस पर ब्राह्मण के रूप में आए विष्णु जी कहते हैं कि सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं, इसलिए तुम उनकी पूजा करो। इससे तुम्हारे सभी दुखों का नाश हो जाएगा।
बूढ़े ब्राह्मण के कहे अनुसार, निर्धन ब्राह्मण ने व्रत को करने का संकल्प लिया। वह सवेरे उठकर सत्यनारायण भगवान के व्रत का निश्चय कर भिक्षा के लिए चला दिया। उस दिन उसे अन्य दिनों से अधिक भिक्षा प्राप्त हुई, जिससे उसने अपने बंधु-बांधवों के साथ मिलकर भगवान सत्यनारायण के निमित्त व्रत किया। व्रत की महिमा से वह निर्धन ब्राह्मण सभी दुखों से मुक्त होगा।
इन लोगों को मिली कष्टों से मुक्ति
इसके बाद अन्य लोगों ने भी इस व्रत को किया और सभी कष्टों से मुक्त होकर सुख-सम्पदा से परिणूर्ण हो गए। दीन ब्राह्मण की तरह ही एक काष्ठ विक्रेता, भील व राजा उल्कामुख ने भी सत्यनारायण जी का व्रत किया जिससे उन्हें समस्त दुखों से मुक्त हो गए। श्री सत्यनारायण की कथा से यह पता चलता है कि चाहे राजा हो या रंक हर किसी को व्रत-पूजन करने का समान अधिकार है। इस व्रत की महिमा से लकड़हारा, गरीब ब्राह्मण, उल्कामुख आदि सुख, सौभाग्य, संपत्ति और संतान की प्राप्ति हुई। इसके साथ ही ये सभी लौकिक सुख भोग कर परलोक में मोक्ष के अधिकारी हुए।डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'