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Pitra Dosh ke Upay: पितृ दोष दूर करने के लिए करें ये विशेष उपाय, बन जाएंगे सारे बिगड़े काम

Pitra Dosh ke Upay प्रकांड पंडितों का कहना है कि पितृ के अप्रसन्न या नाराज होने से पितृ दोष लगता है। वहीं पूर्व जन्मों के प्रारब्ध के चलते भी जातक पितृ दोष से पीड़ित हो सकता है। पितृ दोष से पीड़ित जातक को जीवन में ढेर सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अतः पितृ दोष का निवारण अनिवार्य है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 23 Apr 2024 06:21 PM (IST)
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Pitra Dosh ke Upay: पितृ दोष दूर करने के लिए करें ये विशेष उपाय, बन जाएंगे सारे बिगड़े काम

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Pitra Dosh ke Upay: कुंडली में कई प्रकार के दोष लगते हैं। इनमें एक पितृ दोष है। ज्योतिषियों की मानें तो अगर कोई जातक लंबे समय तक कालसर्प दोष से पीड़ित है, तो जातक के पितृ दोष से पीड़ित होने की संभावना बढ़ जाती है। अशुभ ग्रहों के चलते भी जातक पितृ दोष से पीड़ित होता है। कई जातकों को जन्म से पितृ दोष लगा रहता है। इस बारे में प्रकांड पंडितों का कहना है कि पितृ के अप्रसन्न या नाराज होने से पितृ दोष लगता है। वहीं, पूर्व जन्मों के प्रारब्ध के चलते भी जातक पितृ दोष से पीड़ित हो सकता है। पितृ दोष से पीड़ित जातक को जीवन में ढेर सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। साथ ही अकस्मात किसी अनहोनी का खतरा रहता है। अतः पितृ दोष निवारण अनिवार्य है। अगर आप भी पितृ दोष से निजात पाना चाहते हैं, तो ये उपाय अवश्य करें। इन उपायों को करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

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उपाय

  • अगर आप पितृ दोष से पीड़ित हैं, तो रोजाना स्नान-ध्यान के बाद दक्षिण दिशा में मुखकर जल में काले तिल मिलाकर पितरों को जल का अर्घ्य दें। शास्त्रों में तीन पीढ़ी तक जल देने का विधान है। इस उपाय को करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा साधक पर बरसती है।
  • पितृ दोष से निजात पाने के लिए हर रोज सन्ध्याकाल में आचमन कर स्वयं को शुद्ध करें। इसके पश्चात गोबर या मिट्टी से निर्मित दीये में तेल मिश्रित बाती जलाकर छत पर दक्षिण दिशा में रख दें। इस समय पितरों से कुशल मंगल की कामना करें।
  • पितृ दोष से मुक्ति पाना चाहते हैं, तो रोजाना स्नान-ध्यान के बाद जल में काले तिल मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें। इस उपाय को करने से भी पितृ दोष दूर होता है। साथ ही रोजाना पितृ पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ करें।

दोष कवच

कृणुष्व पाजः प्रसितिम् न पृथ्वीम् याही राजेव अमवान् इभेन।

तृष्वीम् अनु प्रसितिम् द्रूणानो अस्ता असि विध्य रक्षसः तपिष्ठैः॥

तव भ्रमासऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।

तपूंष्यग्ने जुह्वा पतंगान् सन्दितो विसृज विष्व-गुल्काः॥

प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायु-र्विशोऽ अस्या अदब्धः।

यो ना दूरेऽ अघशंसो योऽ अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत्॥

उदग्ने तिष्ठ प्रत्या-तनुष्व न्यमित्रान् ऽओषतात् तिग्महेते।

यो नोऽ अरातिम् समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यत सं न शुष्कम्॥

ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याधि अस्मत् आविः कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।

अव स्थिरा तनुहि यातु-जूनाम् जामिम् अजामिम् प्रमृणीहि शत्रून्।

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डिस्क्लेमर-''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'