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Pitru Paksha 2023: जानें, क्यों देव नगरी गया में किया जाता है पिंडदान और क्या है इसका धार्मिक महत्व ?

Pitru Paksha 2023 धर्म ग्रंथों में निहित है कि चिरकाल में गयासुर नामक एक असुर था। वह जगत के पालनहार भगवान विष्णु का परम भक्त था। गयासुर ने अपने तप से भगवान विष्णु को प्रसन्न कर देवताओं से भी अधिक पवित्र होने का वरदान पा लिया। ऐसा कहा जाता है कि तत्कालीन समय में गयासुर के दर्शन मात्र से व्यक्ति के सभी पाप मिट जाते थे।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 28 Sep 2023 01:01 PM (IST)
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Pitru Paksha 2023: जानें, क्यों देव नगरी गया में किया जाता है पिंडदान और क्या है इसका धार्मिक महत्व ?
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क । Pitru Paksha 2023: सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह धार्मिक पर्व हर वर्ष अश्विन माह के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है। इस वर्ष पितृ पक्ष की शुरुआत 29 सितंबर से हो रही है। वहीं, पितृ पक्ष का समापन 14 अक्टूबर को है। इस दिन अश्विन अमावस्या है, जिसे सर्वपितृ अमावस्या भी कहते हैं। पितृ पक्ष के दौरान पितरों को मोक्ष दिलाने हेतु तर्पण किया जाता है। इस दौरान श्राद्ध कर्म और पिंडदान करने का भी विधान है। लेकिन क्या आपको पता है कि देव नगरी गया में ही क्यों पिंडदान किया जाता है? आइए जानते हैं-

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गया नाम कैसे पड़ा ?

धर्म ग्रंथों में निहित है कि चिरकाल में गयासुर नामक एक असुर था। वह जगत के पालनहार भगवान विष्णु का परम भक्त था। गयासुर ने अपने तप से भगवान विष्णु को प्रसन्न कर देवताओं से भी अधिक पवित्र होने का वरदान पा लिया। ऐसा कहा जाता है कि तत्कालीन समय में गयासुर के दर्शन मात्र से व्यक्ति के सभी पाप मिट जाते थे। साथ ही मरने के बाद स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती थी। इससे स्वर्ग में अव्यवस्था फैल गई।

यह देख स्वर्ग के देवता चिंतित हो उठे। तब ब्रह्मा जी ने गयासुर से पवित्र स्थल पर यज्ञ करने की इच्छा जताई। यह सुन गयासुर स्वंय गया जी में भूमि पर लेट गए। इसी स्थान पर देवताओं ने गयासुर के शरीर पर यज्ञ किया। हालांकि, गयासुर का शरीर स्थिर रहा। यह जान सभी भगवान विष्णु के पास गए और गयासुर की भक्ति से मुक्ति दिलाने की इच्छा जताई।

तब भगवान विष्णु जी गयासुर के शरीर पर विराजमान हो गए। उससे भी गयासुर विचलित नहीं हुए। उस समय भगवान विष्णु प्रसन्न होकर गयासुर से वर मांगने को कहा। यह सुन गयासुर बोला-आप अनंत काल तक इस स्थान पर विराजमान रहें। यह सुन भगवान विष्णु भाव विभोर हो गए।

गयासुर का शरीर पत्थर में परिवर्तित हो गया। उस समय भगवान विष्णु ने कहा- जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से गया में अपने पितरों का पिंडदान करेगा। उसके मृत पूर्वज को मोक्ष की प्राप्ति होगी। त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने फल्गु नदी के तट पर अपने पिता दशरथ जी का पिंडदान किया था। अतः कालांतर से गया में पितरों का पिंडदान किया जाता है।

डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।