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Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष के दौरान इस मंदिर के जरूर करें दर्शन, मिलेगी पितरों को मुक्ति

सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह 16 दिनों तक मनाया जाता है और लोग इस दौरान अपने पितरों की पूजा करते हैं। इन दिनों (Pitru Paksha 2024) पितृ पूजा पितृ तर्पण और पिंड दान करना बहुत फलदायी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है इससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। साथ ही जीवन में शुभता का दोबारा से आगमन होता है।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Fri, 16 Aug 2024 04:34 PM (IST)
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Pitru Paksha 2024: दक्षेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन मात्र से दूर होता है पितृ दोष

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। पितृ पक्ष को हिंदू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की पूजा और पिंडदान करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस अवधि के दौरान पितृ देव धरती पर आते हैं और सभी के कष्टों को सदैव के लिए दूर करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2024) की शुरुआत 17 सितंबर, 2024 से हो रही हैं।

वहीं, इसका समापन 02 अक्टूबर को होगा, जब पितृ पक्ष को कुछ ही दिन शेष रह गए हैं, तो आइए आज एक ऐसे मंदिर के बारे में जानते हैं, जिसका दर्शन करने से पितृ दोष समाप्त होता है।

दक्षेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन मात्र से दूर होता है पितृ दोष

दक्षेश्वर महादेव मंदिर (Daksheshwar Mahadev Mandir) भगवान शिव के प्रमुख धाम में से एक माना जाता है। यह मंदिर पूर्ण रूप से भगवान शंकर की पूजा के लिए समर्पित है। यह हरिद्वार के कनखल में स्थित है। इस पवित्र स्थल का नाम माता सती के पिता राजा दक्ष के नाम पर रखा गया है। इस शिव धाम में देवों के देव महादेव के साथ दक्ष प्रजापति की भी पूजा होती है। बता दें, इस मंदिर का निर्माण 1810 में रानी धनकौर द्वारा करवाया गया है।

ऐसी मान्यता है कि इस धाम में पूजा-पाठ और दर्शन करने से भक्तों के सभी दुख दूर होते हैं। साथ ही कुंडली से पितृ दोष का प्रभाव धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है।

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इस स्थान पर माता सती ने त्यागे थे अपने प्राण

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें सभी देवी-देवता शामिल हुए थे, लेकिन उन्होंने भगवान शिव को इस पवित्र अनुष्ठान का निमंत्रण नहीं दिया था। वहीं, शिव जी के लाख समझाने पर भी माता सती अपने पिता के इस यज्ञ में शामिल होने के लिए पहुंच गई थीं।

पिता द्वारा पति का अपमान होने पर देवी ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे, जिसका प्रमाण आज भी इस धाम में मिलता है। दरअसल, वह यज्ञ कुण्ड आज भी मंदिर में अपने स्थान पर मौजूद है।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।