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Pitru Paksha 2024: बेहद महत्वपूर्ण है श्राद्ध कर्म, इस दौरान किया गया पिंडदान सात पीढ़ियों का करता है उद्धार

पूर्वजों को समर्पित समय है पितृ पक्ष। इस पखवाड़े में पितरों को प्रसन्न करने क्षमा मांगने और पितृ दोष से मुक्ति के लिए प्रयास किए जाते हैं। यह सनातन धर्म ही नहीं बल्कि कई विदेशी संस्कृतियों का भी हिस्सा है तो चलिए इस विशेष अवधि के बारे में विस्तार से जानते हैं जिसमें दान-पुण्य करके अपने पितरों को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है।

By Jagran News Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sun, 15 Sep 2024 12:00 AM (IST)
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Pitru Paksha 2024: बेहद महत्वपूर्ण है श्राद्ध कर्म।

नई दिल्ली, मालिनी अवस्थी (पद्मश्री से सम्मानित लोकगायिका)। हां तो माता जी, आपके पिता जी का नाम था स्वामी दीन शुक्ला और आपके बाबा का नाम था मुकुंद लाल शुक्ला, गांव जिलाबांदा बुंदेलखंड! हाथ में अक्षत लीजिए, अब अपने सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों का स्मरण कीजिए।’ आंख बंद किए वृद्धा नानी के नैनों से आंसू झरते जा रहे थे। आज जब लिखने बैठी हूं तो कलम मुझे 32 वर्ष पुरानी स्मृति को साझा करने के लिए बाध्य कर रही है। 1992 का वर्ष, हम सपरिवार बद्रीनाथ धाम की यात्रा में थे। सास, ससुर, पति, बच्चे और साथ में हमारी ननिया सास। बद्रीनाथ धाम दर्शन उनके मन की अपूर्व साध थी। बद्रीनाथ तक पहुंचते-पहुंचते हमारी ननिया सास शारीरिक ही नहीं, भावनात्मक रूप से अत्यंत शिथिल हो चुकी थीं।

प्रातः बद्रीविशाल के दर्शन के बाद उन्होंने फिर से वही बात दोहरानी शुरू की, जिसे हम सब पिछले चार दिनों से सुनते आए थे कि कैसे पुराणों में पितृ तर्पण के लिए जो महात्म्य बिहार में स्थित गया जी का बताया गया है, वही महात्म्य बद्रीनाथ धाम का भी है।

कैसे उन्हें बद्रीनाथ में पुरोहित-पंडों से अपने परिवार की वंशावली का विवरण मिलेगा और कैसे वे अपने पितरों का पिंडदान कर सकेंगी। पूरा परिवार तर्पण के लिए बैठा, किंतु अलकनंदा नदी के तट पर ब्रह्मकपाल तीर्थ पर स्मृतिसाधना में साधिका सी बैठी श्वेतवसना नानी के चेहरे पर संतोष की वह सुखमय आभा आज भी भूलती नहीं। दो दिन बाद से वर्ष का सबसे सुंदर समय पितृ पक्ष आरंभ हो रहा है। एक बार पुनः पितृ पक्ष के माध्यम से अपने पितरों को प्रणाम करने का, पूर्वजों की पुण्यस्मृतिगंगा में स्नान करने का समय आ गया है।

धरती पर आते हैं पितर

माना जाता है कि पितृ पक्ष के समय पितृदेव धरतीलोक पर आते हैं और प्रेम सहित अर्पित प्रसाद को ग्रहण करते हैं, प्रसन्न होकर आशीर्वाद भी देते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद का कर्म है तर्पण-पिंडदान और श्राद्ध! धर्म शास्त्र में कहा गया है कि जो परिजन पृथ्वीलोक को छोड़कर जा चुके हैं, उनके आत्मा की शांति और पितरों का ऋण उतारने के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म अवश्य करने चाहिए। इसीलिए पितृ पक्ष में पितरों के लिए भोजन निकाला जाता है। सामान्य धारणा यह है कि जिनकी मृत्यु हो जाती है, वह पितर बन जाते हैं। किंतु गरुड़ पुराण पढ़ने से यह जानकारी मिलती है कि मृत्यु के पश्चात मृतक व्यक्ति का आत्मा प्रेतरूप में यमलोक की यात्रा शुरू करता है, इस यात्रा के दौरान संतान द्वारा प्रदान किए गए पिंडों से आत्मा को बल मिलता है।

पिंडदान से पितरों को शांति एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। भूलोक से प्रस्थान की तिथि पर घर में विधिवत पिंडदान किया जाता है। भारत के प्रमुख तीर्थ में सर्वोपरि है गया! मोक्षस्थली कहे जाने वाले गया में फाल्गू नदी के तट पर किए गए पिंडदान से परिवार के 108 कुल एवं सात पीढ़ियों का उद्धार माना गया है।

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अद्भुत परंपरा की साक्षी

पुराणों में बताया गया है कि प्राचीन नगर गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृदेव के रूप में निवास करते हैं। स्वयं मैं श्राद्ध की परंपरा का बहुत मनोयोग से पालन करती हूं। ददिया सास के प्रस्थान के बाद पति और सास-ससुर के साथ और अपनी माता जी के प्रस्थान के बाद पिता जी को लेकर जब मैं गया आई, तो यह देख सुखद आनंद हुआ, जब वहां के पंडा ने बिना भेदभाव किए स्त्रियों से पिंडदान कराया और अपने दोनों कुलों के पितरों को स्मरण कराया।

ढूंढने पर पिता जी को पंडा समाज से कन्नौज-फतेहपुर के अपने पूर्वजों के विस्तृत ब्यौरे मिल गए। अचरज दिखाने पर पंडा जी हंसकर बोले, यदि आपके कुल का, कुटुंब का, आपके गांव का भी कोई कभी यहां आया है, वह सब यहां बहीखाते में दर्ज है।

परिजन, पितर, पूर्वज, देव इन सभी का डाटा आर्काइव रखने की क्या सुव्यवस्थित और अद्भुत प्रणाली है पंडा परंपरा! शास्त्रों में पितरों को देवताओं के समान पूजनीय बताया गया है। पितरों के दो रूप बताए गए हैं- देव पितर और मनुष्य पितर। देव पितर का काम न्याय करना है। यह मनुष्य

एवं अन्य जीवों के कर्मों के अनुसार उनका न्याय करते हैं। इस बात पर प्रायः बहुत जिज्ञासा होती है कि क्या हमारे पितर परलोक सिधारने के बाद भी हमें देख सकते हैं? गरुण पुराण के अनुसार, मृत्युलोक पर हमारे पूर्वज अपने परिवार के हर सदस्य पर नजर रखते हैं। प्रसन्न पूर्वज अपनी संतति की अपरोक्ष रूप से सहायता करते हैं, रक्षा करते हैं और दुखी पूर्वज श्राप देते हैं, इसी श्राप को पितृ दोष माना जाता है। यह विचार ही रोमांचित करता है कि हमारे प्रियजन मृत्यु के बाद भी हमें देख सकते हैं, अदृश्य पितर हमारी रक्षा कर सकते हैं। यह सच हो या नहीं, लेकिन यह सत्य है कि पितरों की पूजा में यह कामना अवश्य शामिल रहती है।

हर संस्कृति की अपनी विरासत

पितरों की पूजा सार्वभौमिक है। कहा जा सकता है कि विश्व के सभी उन्नत सभ्यताओं में पितृ पूजा की जाती है। चीन में छिंग मिंग हो या जापान में बौन पर्व, कमोबेश हर संस्कृति में पितरों की पूजा की जाती है। इसके पीछे भावना यही है कि कि पितर अपनी संतति का भला चाहते हैं एवं विशेष पूजा-प्रार्थना किए जाने पर अपनी संतानों की रक्षा के लिए सक्रिय हो जाते हैं। जे. के. रोलिंग के सात खंडों के विश्वविख्यात उपन्यास एवं इस पर बनी फिल्म सीरीज ‘हैरी पाटर’ के हिंदी संस्करण में पितृदेव की परिकल्पना की गई है। जो संकट के समय सही मंत्र के साथ आह्वान करने पर दुष्ट आत्माओं और बुरी परिस्थितियों से बचाते हैं।

नन्हा (बाद में युवा) हैरी पाटर एक जादूगर है, जिसका शत्रु है जादूगर वोल्डेमोर्ट! सात किताबों की इस शृंखला में हैरी डिमेंटर यानी भूत-पिशाचों से रक्षा के लिए सदा अपने मृत माता-पिता से जादुई संरक्षण मांगता है। यह बताना रोचक होगा कि हैरी पाटर एक जगह पिशाच से बचने के लिए मंत्र पढ़ता है ‘एक्सपेक्टो पेट्रोनम’ अर्थात ‘पितृदेव संरक्षणम्’ जिसका अर्थ है, ‘हे पितृगण मेरी रक्षा करो!’ बच्चों के लिए लिखी गई इस ब्रिटिश जादुई कथा का जादू, दुनिया भर के वयस्कों के भी सिर चढ़कर

बोलता आया है। कहानी जादू और तिलिस्म की थी, लेकिन भावना की डोर से बंधी हुई.. पितरों का अपने बच्चों की रक्षा के लिए प्रकट होना। हाल में ही फिल्म आई है ‘स्त्री 2’! फिल्म की मूलकथा में कुछ-कुछ यही भाव है। स्त्री एक प्रेत है। वह चंदेरी गांव की रक्षक है। जब मुख्य खलनायक का भय मंडराता है तो प्रार्थना किए जाने पर स्त्री का प्रेत पूरे क्षेत्र की रक्षा करता है। उल्लेखनीय यह है कि यह फिल्म सुपर हिट हुई है। निरंतर दर्शकों की पसंद बनी हुई है!

जड़ों से जुड़ने का आयोजन

वही संस्कृति टिकी रहती है जो अपनी जड़ों से, अपने परिवार से जुड़ी रहती है। वैसे सनातन धर्म में हमारे पितरों को हर मांगलिक अवसर पर श्रद्धापूर्वक स्मरण करने की परंपरा है। किंतु पितृपक्ष में विशेष अनुष्ठान -पूजा द्वारा अपनी कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। पितृपक्ष को केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नही देखा जाना चाहिए। आज आधुनिक समाज में जहां व्यक्ति अपने पूर्वजों के प्रति कर्तव्यों को भूलता जा रहा है, पितृपक्ष का आयोजन उन्हें याद दिलाने का, परिवार को जोड़ने का महत्वपूर्ण माध्यम है।

आइए अपनी जड़ों से जुड़ें, अपने परिवार के इतिहास का स्मरण करें और अपने पितरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें, जिनके कारण आज हम हैं, यह जीवन है। यह समय हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और हमारे परिवार के इतिहास को याद रखने का अवसर प्रदान करता है। आइए इस भाद्रपद की पूर्णिमा से आगामी पक्ष तक प्रतिदिन-प्रतिक्षण पितरों को नमन करें। ऊं पितृ देवतायै नम:!

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