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Pitru Paksha 2024: क्यों भगवान श्रीराम ने फल्गु नदी के तट पर ही अपने पिता का पिंडदान किया?

गरुड़ पुराण में वर्णित है कि पितरों का तर्पण एवं पिंडदान (Pitru Paksha 2024) करने से तीन पीढ़ी के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस शुभ अवसर पर बिहार स्थित गया में पितृ पक्ष मेला का आयोजन किया जाता है। सनातन शास्त्रों में यह भी निहित है कि पांडवों ने भी अपने पितरों का पिंडदान गया में ही किया था।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 08 Sep 2024 06:06 PM (IST)
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Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष का धार्मिक महत्व

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर वर्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर अमावस्या तिथि तक पितृ पक्ष मनाया जाता है। इस दौरान तीन पीढ़ी के पितरों का तर्पण एवं पिंडदान किया जाता है। गरुड़ पुराण में वर्णित है कि पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2024) के दौरान पितरों का तर्पण एवं पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं, व्यक्ति पर पितरों की कृपा-दृष्टि बरसती है। उनकी कृपा से सुख और सौभाग्य और वंश में वृद्धि होती है। पितरों के तर्पण के लिए गया को सर्वोत्तम माना गया है। धार्मिक मत है कि गया में पितरों का तर्पण करने से पूर्वजों को तत्क्षण ही मोक्ष मिल जाती है। अतः पितृ पक्ष के दौरान देश-विदेश से लाखों की संख्या में साधक अपने पितरों का तर्पण एवं पिंडदान करने के लिए गया आते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान फल्गु नदी के तट पर ही क्यों किया? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

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राजा दशरथ की मृत्यु

धर्म जानकारों की मानें तो मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने अपने जीवन में केवल और केवल त्रासदियों का सामना किया। भगवान श्रीराम को जीवनपर्यंत तक दुख ही मिला। राज सिंहासन पर विराजमान होने से एक दिन पहले ही भगवान राम को चौदह वर्षों का वनवास मिला। पिता के वचनों का पालन के लिए भगवान श्रीराम ने राजसिंहासन के बदले वनवास को चुना। भगवान श्रीराम, माता सीता और भाई लक्ष्मण के वनवास गमन के दौरान ही पुत्र वियोग के चलते राजा दशरथ स्वर्ग सिधार गये। राजा दशरथ की अंतिम इच्छा थी कि वह अपने ज्येष्ठ पुत्र भगवान श्रीराम को अयोध्या नरेश बनते देखे। अतः स्वर्ग लोक में राजा दशरथ के ठहरने की उत्तम व्यवस्था की गई थी। राजा दशरथ की मृत्यु के समय भरत और शत्रुघ्न अपने ननिहाल में थे। राजा दशरथ की मृत्यु की खबर आग की तरह वन में फैल गई। भगवान श्रीराम को भी यह सूचना प्राप्त हुई। राजा दशरथ को मुखाग्नि भरत ने दी थी।

फल्गु नदी

राजा दशरथ की मृत्यु के समय भगवान श्रीराम वन में थे और पिता के वचनों का पालन करने हेतु वापस अयोध्या नहीं लौटे। हालांकि, भगवान श्रीराम ने क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए अपने पिता का पिंडदान गया स्थित फल्गु नदी के तट पर किया। इससे संबंधित एक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार, भगवान राम एवं भाई लक्ष्मण तेरहवीं पर तर्पण एवं पिंडदान हेतु सामग्री एकत्र करने में जुटे थे। तब पिंडदान का समय निकल रहा था। यह जान माता सीता ने राजा दशरथ का तर्पण एवं पिंडदान कर दिया था। जब भगवान राम एवं लक्ष्मण वापस लौटे, तो माता सीता ने पिंडदान की जानकारी दी। उस समय भगवान श्रीराम को विश्वास नहीं हुआ। तब माता सीता ने साक्षी जनों को उपस्थित होकर सच बताने का अनुरोध किया। हालांकि, फल्गु नदी ने असहमति जताई। यह जान मां सीता ने फल्गु को हमेशा सूखे रखने का श्राप दे दिया। उस समय भगवान श्रीराम और भाई लक्ष्मण ने अपने पिता का पिंडदान किया। गयासुर के नाम पर शहर का नाम गया पड़ा है। गया स्थित फल्गु नदी के तट पर पितरों का तर्पण करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः भगवान श्रीराम ने फल्गु नदी का चयन किया था।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।