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Pitru Paksha 2024: इस चीज के बिना अधूरा है पितृ पक्ष, श्राद्ध कर्म में जरूर करें शामिल, तभी मिलेगा पूर्ण फल

पितृ पक्ष को बेहद अहम समय माना जाता है जब लोग अपने पूर्वजों की अत्यधिक श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं। हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बहुत बड़ा धार्मिक महत्व है जो लोग पितृ दोष से परेशान हैं उनके लिए भी यह समय बहुत खास होता है क्योंकि इस दौरान पितरों का तर्पण करके इस दोष से राहत मिल जाती है।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Mon, 16 Sep 2024 11:34 AM (IST)
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Pitru Paksha 2024: इसके बिना अधूरे हैं श्राद्ध पक्ष के अनुष्ठान

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से पितृ पक्ष शुरू होने जा रहे हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के पितरों से जुड़े अनुष्ठान किए जाएंगे। इसकी समाप्ति सर्वपितृ अमावस्या के साथ होगी, जो 2 अक्टूबर, 2024 को है। पितृ पक्ष पूर्वजों को समर्पित है। यह काल पितरों की पूजा के लिए सबसे पवित्र काल माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इस विशेष अवधि (Pitru Paksha 2024) में पितृ धरती लोक में आकर सभी के कष्टों को दूर करते हैं, तो आइए इस दिन से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं।

इसके बिना अधूरे हैं श्राद्ध पक्ष के अनुष्ठान (Pitru Paksha 2024 Kush Importance)

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितरों से जुड़े अनुष्ठान जैसे - श्राद्ध कर्म, तर्पण, पिंडदान आदि कार्यों में कुशा का होना अति आवश्यक होता है, जिसका उल्लेख हमारे शास्त्रों में भी मिलता है। कुशा को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है, जिस वजह से पूर्वजों के सभी अनुष्ठान में कुशा का उपयोग करना चाहिए। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।

साथ ही पुण्यफलों की प्राप्ति होती है। बता दें, कुशा दाएं हाथ की अनामिका उंगली में अंगूठी बनाकर धारण की जाती है और सभी श्राद्ध कर्म के दौरान कुशा के आसन पर बैठा जाता है। तभी पूजा पूर्ण मानी जाती है।

श्राद्ध पक्ष का महत्व (Pitru Paksha 2024 Significance)

पितृ पक्ष पूर्वजों से जुड़े अनुष्ठान करने का एक पवित्र समय है, जो पूर्ण रूप से पूर्वजों को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि ये अनुष्ठान दिवंगत लोगों की आत्मा को शांति प्रदान करते हैं और उन्हें सांसारिक मोह-माया से मुक्ति दिलाने में मदद करते हैं। परंपरागत रूप से, सबसे बड़ा बेटा या परिवार का कोई अन्य पुरुष सदस्य इन अनुष्ठान को पूर्ण करते हैं। इससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

पितरों का प्रसन्न करने का मंत्र

1. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

2. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।

3. ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।