Shani Pradosh Vrat पर पूजा के समय करें दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ, आर्थिक तंगी से मिलेगी निजात
धार्मिक मत है कि शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh Vrat 2024) करने से जीवन में व्याप्त सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं। वहीं निसंतान दंपतियों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। साधक शनि प्रदोष व्रत पर भक्ति भाव से भगवान शिव संग न्याय के देवता शनि देव की पूजा करते हैं। साथ ही शिव-शक्ति के निमित्त व्रत रखते हैं।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 28 Aug 2024 10:00 PM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Pradosh Vrat 2024: सनातन धर्म में त्रयोदशी तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन देवों के देव महादेव संग मां पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में खुशियों का आगमन होता है। प्रदोष व्रत का फल दिन अनुसार प्राप्त होता है। शनि प्रदोष व्रत करने से जीवन में व्याप्त सभी दुख एवं संकट दूर हो जाते हैं। अगर आप भी अपने जीवन में व्याप्त दुख एवं संताप से निजात पाना चाहते हैं, तो शनि प्रदोष व्रत पर विधि-विधान से शिव-शक्ति की पूजा करें। वहीं, पूजा के समय दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।
दशरथकृत शनि स्तोत्र (Dashratha Shani Sotra)
रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन् ।सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी ॥याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं ।एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम् ॥प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा ।पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ॥नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: ।नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: ।त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ॥
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥दशरथ उवाच:प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् ।अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित् ॥