आदर्श जीवन का पवित्र ग्रंथ है श्री गुरु ग्रंथ साहिब, जिसमें है गुरुओं व संतों की वाणी
गुरु नानक साहिब की वाणी में स्पष्ट आह्वान है कि जिनमें प्रेम भावना है वही उनका अनुसरण करें। प्रेम वह है जो परमात्मा से और परमात्मा की रची सारी सृष्टि से हो। यह आदर्श समाज का आधारभूत सिद्धांत था।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 22 Aug 2022 06:09 PM (IST)
डा. सत्येन्द्र पाल सिंह। पांचवें सिख गुरु अरजन देव जी ने पूर्ववर्ती गुरु साहिबान व स्वयं की वाणी को संरक्षित करने का महान कार्य किया था। उसे एक ग्रंथ में संकलित किया गया, जिसे बाद में श्री गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में जाना गया। उन्होंने उसमें भारत के 15 समकालीन भक्तों, संतों व ग्यारह भट्ट कवियों, चार सिखों की वाणी भी जोड़कर मानवता को एक व्यापक आध्यात्मिक दृष्टि प्रदान की। वर्षों के परिश्रम के बाद यह कार्य सन 1604 में संपूर्ण हुआ था। वर्ष 1708 में नांदेड़ साहिब में गुरु गोविंद सिंह जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब को गुरुगद्दी पर आसीन कर गुरुवाणी की सर्वोच्चता स्थापित की। वास्तव में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी किसी समुदाय विशेष के लिए न होकर समस्त मानवता के सरोकारों की वाणी है।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी निराकार परमात्मा की सत्ता के दर्शन कराती है और साथ ही उसकी सर्वव्यापकता को प्रकट कर मानव जीवन के सामान्य व्यवहार की गुणवत्ता सुनिश्चित करने का महान उपकार करती है। गुरुवाणी के अनुसार, परमात्मा निराकार होकर भी घट-घट में व मनुष्य के मन में भी आकार ले रहा है। इस सर्वव्यापकता में परमात्मा को खोजना ही भक्ति है। उसकी कृपा के बिना मनुष्य की बड़ी से बड़ी उपलब्धियां अर्थहीन हैं। वह अंतर्यामी है और मनुष्य के पल-पल का लेखा रख रहा है। उसके भय में जीवन गुणवान कर और प्रेम भावना से उसको पूर्णत: समर्पित होकर ही उसकी कृपा प्राप्त होती है। हिंदू धर्म-दर्शन का अनुसरण करते हुए श्री गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी भी चौरासी लाख योनियों के चक्र में जीवात्मा के आवागमन की बात करती है एवं मनुष्य योनि को आवागमन के चक्र से मुक्त हो परमात्मा में लीन होने का दुर्लभ अवसर मानते हुए सचेत करती है कि वह हर पल का सदुपयोग करे।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार को मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु मानते हुए इन्हें पराजित करने हेतु परमात्मा की शरण में जाने की प्रेरणा दी गई है। इसके साथ ही बल को पुनर्परिभाषित करते हुए विकारों को वश में कर लेने वाले को महाबली कहा गया। मन जब विकारों से मुक्त हो निर्मल हो जाएगा, तभी उसमें परमात्मा का वास होगा। गुरुवाणी के अनुसार, मन अति चंचल है और मनुष्य को भ्रमित करने में समर्थ है। उस पर गुरु के ज्ञान का अंकुश ही परमात्मा की ओर उन्मुख कर सकता है।
गुरुवाणी ने मनुष्य की चेतना को जाग्रत करने के लिए जहां परमात्मा की महानता से जोड़ा, वहीं संसार के सच का भी ज्ञान कराया। संसार में जो भी द्रष्टव्य है, वह सब कुछ नाशवान है। इससे मोह व्यर्थ है। संसार में मनुष्य का आना एक रात के मेहमान की तरह है। निर्लिप्त भाव से संसार में रहते हुए परमात्मा का प्रेम भाव से नाम जपना ही सच्ची उपलब्धि है। गुरु नानक साहिब की वाणी में स्पष्ट आह्वान है कि जिनमें प्रेम भावना है, वही उनका अनुसरण करें। प्रेम वह है, जो परमात्मा से और परमात्मा की रची सारी सृष्टि से हो। यह आदर्श समाज का आधारभूत सिद्धांत था।
[सिख संस्कृति के जानकार]