Raksha Bandhan 2023: जानिए कैसे शुरू हुआ रक्षाबंधन का पर्व, मिलती हैं कई पौराणिक कथाएं
Raksha Bandhan history रक्षाबंधन सनातन धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता को दर्शाता है। यह पर्व प्रत्येक वर्ष सावन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं रक्षाबंधन का पर्व कैसे शुरू हुआ? इस त्योहार को मनाने के पीछे कई सारी पौराणिक कहानियां प्रचलित है। आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ पौराणिक कथाएं।
By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Wed, 30 Aug 2023 10:38 AM (IST)
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Raksha Bandhan 2023: हिंदू धर्म में रक्षाबंधन का पर्व विशेष महत्व रखता है।इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र या राखी बांधती हैं और भाई के सफल भविष्य के लिए कामना करती हैं। वहीं, भाई अपनी बहनों की रक्षा का वचन देते हैं साथ ही वह अपनी बहन को कुछ-न-कुछ उपहार भी देते हैं। इस वर्ष भद्रा काल के चलते रक्षाबंधन का पर्व 2 दिन यानी 30 और 31 अगस्त को मनाया जाएगा।
लक्ष्मी जी ने बांधी थी राजा बली को राखी
स्कंद पुराण, पद्म पुराण और श्रीमद्भागवत पुराण की कथा के अनुसार असुर राजा दानवीर राजा बली भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक बार वह भगवान को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ कर रहे थे। अपने भक्त की परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और ब्राह्मण के वेश में राजा बली के द्वार भिक्षा मांगने पहुंचे। वामन भगवान ने तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा ने ब्राह्मण की मांग स्वीकार कर ली। ब्राह्मण ने पहले पग में पूरी भूमि और दूसरे पग ने पूरा आकाश नाप दिया। फिर भगवान ने पूछा कि अपना तीसरा पग कहां रखूं। तब राजा बलि ने अपना सिर आगे करके कहा की आप तीसरा पग मेरे सिर पर रख लीजिए।
राजा की यह भक्ति देख वामन भगवान ने उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया। साथ राजा बलि ने यह भी वरदान मांगा कि आप मेरे साथ पाताल लोक में रहें। उधर भगवान विष्णु के वापिस न लौटने के कारण माता लक्ष्मी परेशान हो उठीं। उन्होंने एक गरीब महिला का वेष बनाया और राजा बलि के पास पहुंचकर उन्हें राखी बांध दी। राखी के बदले राजा ने कुछ भी मांग लेने को कहा। तो माता लक्ष्मी में अपने असली रूप में आकर भगवान विष्णु को वापिस लौटाने की मांग रख दी। राखी का मान रखते हुए राजा ने भगवान विष्णु को मां लक्ष्मी के साथ वापस भेज दिया।
महाभारत काल में मिलती हैं ये कथाएं
मान्यता है कि महाभारत के युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने 100 गाली देने पर राजा शिशुपाल का सुदर्शन चक्र से वध कर दिया था। जिसके कारण उनकी उंगली से खून बहने लगा और वहां मौजूद द्रौपदी ने अपने साड़ी का टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली में बांध दिया। जिसके बाद भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को हर संकट से बचाने का वचन दिया। उन्होंने अपने इस वचन का मान रखते हुए द्रौपदी के चीरहरण के समय भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा की थी। तभी से रक्षाबंधन के दिन बहनों द्वारा भाई की कलाई में राखी बांधी जाती है।
रक्षाबंधन से ही संबंधित महाभारत काल में एक और कथा प्रचलित है। जिसके अनुसार महाभारत के युद्ध के दौरान जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को किस प्रकार पार कर सकता हूं, तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि वह अपने सभी सैनिकों को रक्षा सूत्र बांधें। युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया और अपनी पूरी सेना में सभी को रक्षा सूत्र बांधा।
मुगल काल से संबंधित है ये कथा
देश में एक समय राजपूत, मुस्लिम आक्रमण के खिलाफ लड़ रहे थे। अपने पति राणा सांगा की मृत्यु के बाद मेवाड़ की कमान रानी कर्णावती ने संभाला हुई था। चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के आक्रमण से अपने राज्य व अपनी रक्षा के लिए सम्राट हुमायुं को एक पत्र के साथ राखी भेजकर रक्षा का अनुरोध किया था। हुमायुं ने राखी को स्वीकार किया रानी कर्णवती की रक्षा के लिए चित्तौड़ रवाना हो गए। लेकिन उन्हें पहुचने में देरी हो गई और रानी ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर (खुद को आग लगा ली) कर लिया। लेकिन वचन निभाते हुए हुमायूं की सेना ने चित्तौड़ से शाह को खदेड़ कर रानी के पुत्र विक्रमजीत सिंह को चित्तौड़ का शासन सौंप दिया।
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