Raksha Bandhan 2024: बहन और भाई के प्रेम का प्रतीक है रक्षाबंधन, इन चीजों से बनता है यह और भी खास
देशभर में सावन पूर्णिमा पर अधिक उत्साह के साथ रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। यह पर्व भाई और बहन के प्यार-स्नेह का प्रतीक है। इस शुभ अवसर पर बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनके उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना करती हैं। इस दौरान भाई अपनी बहन को उपहार देते हैं। आइए इस लेख में जानते हैं इस पर्व से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सावन आते ही बेटियों को मायका हूक देने लगता है, तो विदा होता हुआ सावन कलाई में रक्षा सूत्र बंधवाने को व्याकुल भाइयों और प्रतीक्षा करती बहनों को पुकारने लगता है। भाई-बहन के स्नेह और विश्वास के पर्व रक्षाबंधन को पूर्णिमा के दिन मनाकर ही विदा होता है मनभावन सावन। मालिनी अवस्थी का लोकरंग से पगा आलेख...
भारतीय सभ्यता सामाजिक संबंधों की सर्वोत्कृष्ट पाठशाला है। हमारे पूर्वजों ने समाज में ऐसी व्यवस्था बनाई जहां प्रत्येक संबंध का परस्पर निर्वहन संपूर्ण प्रेम समर्पण और मर्यादा से हो। इसका अनुपम उदाहरण है रक्षाबंधन। रक्षाबंधन एक अद्वितीय पर्व है। भाई-बहन के निष्कलंक स्नेह की मिसाल है। भाई अपनी बहन की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध होता है और बहन अपने भाई की खुशियों की प्रार्थना करती है।यह रिश्ता स्नेह, समर्थन और सामंजस्यपूर्णता की मिसाल है। रक्षासूत्र एक ऐसा धागा है जिसका आधार रक्षा का वचन है। बहन को किसी भी संकट से बचाने का विश्वास दिलाता भाई जब अपनी कलाई आगे बढ़ाकर राखी बंधवाता है, तो मन ही मन इस संकल्प को दोहराता है और धागे में ममता व स्नेह घोलती बहन जब भाई को टीका लगाकर राखी बांधती है तो मन ही मन अपने भाई की प्रसन्नता पर न्योछावर हो रही होती है।
देवालय में भाई-बहन का वास
हमारे इतिहास में भाई-बहन के परस्पर स्नेह और विश्वास को किस प्रकार सर्वोच्च स्थान दिया गया है, इसका अनुपम उदाहरण है ओडिशा का जगन्नाथ मंदिर। इस मंदिर के गर्भगृह में श्रीकृष्ण और बलराम के साथ बहन सुभद्रा जी विग्रह रूप में उपस्थित हैं। भारतीय संस्कृति में भाई-बहन की एक साथ पूजा का अनुपम साक्ष्य है यह देवालय। भगवान श्रीकृष्ण ने प्रमुख भूमिका निभाते हुए सुभद्रा का विवाह अर्जुन के साथ संपन्न कराया, इस नाते अर्जुन श्रीकृष्ण के बहनोई हुए। यह भी एक कारण बना कि महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण पांडवों की मदद करने आगे आए। वेद-पुराण-ग्रंथों में भाई-बहनों के ऐसे अनन्य उदाहरण मिलते हैं। यमराज को हमारे यहां मृत्यु का देवता माना जाता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मान्यता है कि यमुना ने यम को टीका कर रक्षा सूत्र बांधकर अमर बना दिया। तब से भाई दूज और रक्षाबंधन की परंपरा आरंभ हुई।
युद्ध में आगे आए भाई
रावण और शूर्पणखा का प्रसंग किसे स्मरण नहीं। बहन के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए रावण किस सीमा तक गया, यह सर्वविदित है। इसी प्रकार थे द्रौपदी एवं धृष्टद्युम्न। पांचाल देश के राजा द्रुपद द्वारा कराए गए यज्ञ से धृष्टद्युम्न और द्रौपदी का जन्म हुआ। द्रौपदी का अपमान कौरवों के सर्वनाश का कारण बना और धृष्टद्युम्न के हाथों द्रोणाचार्य का वध हुआ। महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका थी। यदुवंशी राजा शूरसेन की पुत्री कुंती वासुदेव की बहन थीं, इसलिए वे श्रीकृष्ण की बुआ थीं। हस्तिनापुर के नरेश महाराज पांडु की पत्नी कुंती पांडवों की मां थीं। यह भाई-बहन का गहरा पैतृक रिश्ता था जिसके कारण वासुदेव पुत्र श्रीकृष्ण पांडवों की रक्षा के लिए आगे आते हैं। भाई-बहन के संबंध में स्नेह के अनेक रंग दिखते हैं। कहीं गाढ़ी मित्रता है तो कहीं मातातुल्य दुलार, कहीं हंसी ठिठोली शरारत है तो कहीं पितातुल्य आदर का भाव। रक्षाबंधन ऐसा पर्व है जो रक्त संबंध से परे भी जाकर भाई-बहन के संबंध को भावनात्मक आदर देता है। श्रीकृष्ण द्रौपदी का संबंध ऐसा ही है। श्रीकृष्ण को घाव लगने पर द्रौपदी अपने चीर से उनकी अंगुली पर पट्टी बांधती हैं, श्रीकृष्ण इस भाव के लिए रक्षा का वचन देते हैं। हस्तिनापुर की भरी सभा में जब द्रौपदी का अपमान हो रहा था, तब द्रौपदी श्रीकृष्ण को पुकारती हैं और वो उसके सम्मान की रक्षा करते हैं।
यह भी पढ़ें: Raksha Bandhan 2024: सिर्फ एक नहीं, कई कारणों से बांधी जाती है राखी, जानिए इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं