Raksha Bandhan 2024: सिर्फ एक नहीं, कई कारणों से बांधी जाती है राखी, जानिए इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं
भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता और प्रेम को दर्शाने वाले रक्षाबंधन के पर्व को हिंदू धर्म में विशेष महत्व दिया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई के सफल भविष्य की कामना के साथ उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र या राखी बांधती हैं। भाई अपनी बहनों की रक्षा का वचन देते हैं। रक्षाबंधन मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। आइए जानते हैं उनके बारे में।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। प्रत्येक वर्ष रक्षाबंधन का पर्व सावन माह की पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रक्षाबंधन बनाने का चलन किस प्रकार शुरू हुआ? दरअसल, इस त्योहार को मनाने के पीछे एक नहीं बल्कि कई पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं, जिसका वर्णन अगल-अगल ग्रंथों में मिलता है।
रक्षाबंधन को लेकर जो सबसे प्रचलित कथा है, वह मुगल काल से जुड़ी हुई है। जिसके अनुसार, चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने अपने राज्य की रक्षा के लिए सम्राट हुमायुं को राखी के साथ एक पत्र भेजकर रक्षा का अनुरोध किया था। लेकिन हम आपको रक्षाबंधन से जुड़ी अन्य पौराणिक कथाएं बताने जा रहे हैं।
लक्ष्मी जी ने राजा बलि के सामने रखी ये मांग (Why Raksha Bandhan is Celebrated)
स्कंद पुराण, पद्म पुराण और श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, राजा बलि ने भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक बार भगवान विष्णु ने राजा बलि भक्त की परीक्षा लेने हेतु वामन अवतार धारण किया। इस रूप में भगवान राजा बलि के द्वार पर भिक्षा मांगने पहुंचे और उन्होंने तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा ने ब्राह्मण की इस मांग को स्वीकार कर लिया। वामन भगवान ने एक पग में पूरी भूमि और दूसरे पग ने पूरा आकाश नाप दिया। फिर तीसरा पग रखने की बारी आई तो राजा बलि ने अपना सिर आगे कर कहा कि आप अपना तीसरा पग मेरे सिर पर रख लीजिए।राजा की यह दानवीरता देख भगवान प्रसन्न हुए और राजा बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया। तब राजा बलि ने यह वरदान मांगा कि आप मेरे साथ पाताल लोक में रहें। लेकिन इस वचन के कारण माता लक्ष्मी परेशान हो उठीं। तब माता लक्ष्मी ने एक गरीब महिला का रूप धारण किया और राजा बलि के पास पहुंचकर उन्हें राखी बांधी। जब राजा बलि ने राखी के बदले में कुछ मांगने को कहा, तो माता लक्ष्मी में अपने असली रूप में आकर राजा बलि से कहा कि वह भगवान विष्णु को वचन मुक्त कर दें, ताकि वह वापस अपने धाम लौट सकें। राखी का मान रखते हुए राजा ने भगवान विष्णु जी को वचन से मुक्त कर दिया।
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