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Lord Ram Facts in Hindi: जानें, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और उनके भाइयों के बारे में महत्वपूर्ण बातें

Lord Ram Facts in Hindi भगवान का निर्गुण निराकार रूप सगुण की तुलना में अत्यंत सुलभ है पर जब वही निर्गुण सगुण हो जाता है तो लीलाओं में व्यापकता देख पाना ज्ञानियों के लिए संभव नहीं हो पाता है। श्रीराम के मनुष्य रूप में अवतार की महानता यह है कि उन्होंने मिट्टी में खेलकर वनवास स्वीकार कर राक्षसों से युद्ध कर भी अपने रामत्व और ईश्वरत्व को हिलने-डुलने नहीं दिया।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 15 Apr 2024 07:26 PM (IST)
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Ram Navami 2024: जानें, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और उनके भाइयों के बारे में महत्वपूर्ण बातें
नई दिल्ली, स्वामी मैथिलीशरण (संस्थापक अध्यक्ष, श्रीरामकिंकर विचार मिशन)। Lord Ram Facts in Hindi: श्रीराम के रोम-रोम में अनेक ब्रह्मांडों का वास है। भक्तों के हृदय में जब-जब भावना की संपूर्ण नवमी आती है, तब-तब वे माता कौशल्या के गर्भ में आकर त्रैलोक्य का उद्धार करने के लिए अवतरित होते हैं, जिनके निर्गुण रूप को समझ पाना तो सरल है, पर उनकी सगुण लीला देख-सुनकर बड़े-बड़े मुनियों के मन में भी भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। व्यक्ति के पुरुषार्थ के चारों फल अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष ही चारों भाइयों के रूप में जन्म लेते हैं। श्रीराम मोक्ष हैं, श्रीभरत (bharata) धर्म हैं, श्रीलक्ष्मण (Lakshman) काम हैं और श्रीशत्रुघ्न जी (Shatrughn) अर्थ हैं। राम जन्म के मध्य की जो लीला है, वही श्रीराम का लीला विस्तार है, जिसमें सारे संसार के लिए सुख संचित करने का मानवीय उपक्रम है।

शत्रुघ्न ने मौन रहकर धर्म की सेवा की

जो सारे विश्व को आनंद देने वाले सुख की राशि हैं, वे राम बने। संसार के जीवनोपार्जन करने, भरण पोषण करने वाले श्रीभरत का जन्म हुआ। भगवान श्रीराम के शील सौजन्य की रक्षा और उनकी सुयश-पताका फहराने वाले श्रीलक्ष्मण जी का जन्म हुआ। मौन रहकर धर्म रूप भरत की सेवा करने वाले शत्रुघ्न का जन्म हुआ, जो अर्थ रूप में धर्मानुगामी हो गए। इन चारों भाइयों के जीवन में वेद का संहिता रूप भी है, वेद का ब्राह्मण रूप भी है और आरण्यक भी है। मस्तिष्क, हृदय और कर्म तीनों का सामंजस्य ही वेद है। शंकराचार्य, श्रीरामानंदाचार्य, श्रीवल्लभाचार्य, श्रीमध्वाचार्य जी आदि सभी आचार्यों ने एक में अनेक और अनेक में एक के रूप में श्रीराम के वैदिक और पौराणिक रूप को शास्त्रीय विधि से और भक्तों की भावना की संपूर्ति के लिए अलग-अलग ढंग से प्रस्तुत किया है।

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भगवान का निर्गुण निराकार रूप सगुण की तुलना में अत्यंत सुलभ है, पर जब वही निर्गुण सगुण हो जाता है तो उसके कार्य और लीलाओं में व्यापकता देख पाना ज्ञानियों के लिए भी संभव नहीं हो पाता है। श्रीराम के मनुष्य रूप में अवतार की महानता यह है कि उन्होंने मिट्टी में खेलकर, वनवास स्वीकार कर, राक्षसों से युद्ध कर भी अपने रामत्व और ईश्वरत्व को हिलने-डुलने नहीं दिया। उनका सत्, चित् और आनन्द रूप विशुद्ध बोध विग्रह रूप शाश्वत रहा। अनेक लीलाओं में व्यावहारिक भेद में तात्विक अभेद की निरंतरता है। श्रीराम की इसी व्यापकता और सार्वकालिकता ने पत्थर से लेकर हृदय तक, आकाश से लेकर पाताल तक और जड़ से लेकर चेतन उनको ज्ञेय, ध्येय तथा अनुकरणीय बना दिया। श्रीराम का जन्म एक जागरण, जीवन और अस्तित्व है। राम आस्था हैं, विश्वास और श्रद्धेय हैं। सारी मानव जाति का आदर्श हैं राम।

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रामराज्य की स्थापना करके राम सर्वजन सुखाय और सर्वजन हिताय के वैदिक सिद्धांत को स्थापित करते हैं। श्रीराम का सुख-शांति वितरण का कोई सिद्धांत अपने लिए न होकर सबके लिए होता है। श्रीराम ने जब जन्म लिया तो मध्य दिवस था। श्रीकृष्ण ने मध्य रात्रि में जन्म लिया। यही मध्यस्थता ही जीवन का संतुलन और आत्मसंयम योग है। भगवान श्रीराम का जब जन्म हुआ तो लोग न्योछावर करने लगे। राजा दशरथ ने सबको दान दिया। इस दान की विशेषता यह थी कि जिसको जो भी मिला, उसने उन वस्तुओं को अपने पास न रखकर दूसरों को दे दिया। यही है वेद की ऋचाओं में कहा गया है “सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चित् दुख भाग्भवेत” किसी को किंचित मात्र भी दुख की स्मृति नहीं रही। गुरु वशिष्ठ ने जिस रूप में सबसे पहले भगवान को बालक रूप में देखा, गोस्वामी जी कहते हैं कि उनके अनुपम स्वरूप के लिए कोई उपमा ही नहीं सूझ रही है। श्रीराम के जन्म काल में योग, लग्न, ग्रह, वार और तिथि, सब अनुकूल हो गए। सारे मुहूर्त अनुकूल हो गए। नवमी, जो रिक्ता तिथि थी वह पूर्ण हो गई। दसवीं को रावण का वध हुआ, बस भगवान के भक्तों की एकादशी पूर्ण हो गई।

माता कौशल्या को विस्मय हुआ 

राम जन्म पर दशरथ जी को परमानंद और ब्रह्मानंद की प्राप्ति हुई। श्रीराम का जो पहला रूप कौशल्या जी ने देखा, वह विष्णु रूप था। जिसमें उनके चारों हाथों में शंख, चक्र, गदा, पद्म, था। फिर प्रभु मां को देखकर मुस्कुरा दिए। माता कौशल्या ने कहा कि अब अपना यह रूप छोड़कर आप बालकों वाली लीला कीजिए, तब प्रभु ने रोना शुरू किया। वस्तुत: माता कौशल्या अपने पुत्र राम को पालने में सुलाकर जब भगवान को भोग लगाने के लिए भोजन गृह में गईं। वहां उन्हीं का लाल बैठा भोग स्वयं ही उठाकर खा रहा था। दौड़कर मां पालने के पास गईं तो वहां वही बालक सो रहा था। माता कौशल्या को विस्मय हो गया। उन्हें लगा, दोनों जगह एक साथ मेरा पुत्र कैसे हो सकता है? तब भगवान ने अपना अद्भुत रूप माता कौशल्या को दिखाया था।

दिखरावा मातहि निज अद्भुत रूप अखंड।

रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्मंड।।

एक-एक रोम में अनेक शिव, ब्रह्मा, सूर्य चंद्र, पृथ्वी दिखाई दे रहे हैं। कौशल्या जी ने वह सब देखा, जो न सुना था और न ही देखा था। श्रीराम की अद्भुत माया पर संसार विमोहित हो जाता है। जीव को चाहिए कि सारे कपट-जंजाल को छोड़कर उन्हीं की भक्ति करे, जिनकी भक्ति स्वर्ग का सुख भोगने के बाद भी देवराज इंद्र करते हैं। जीवन में जब तक सीता के रूप में भक्ति, लक्ष्मण के रूप में वैराग्य और भगवान के रूप में ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है, तब तक सारे संसार के मिथ्या भोग केवल कुछ समय के लिए सुख दे सकते हैं, पर शाश्वत सुख तो भगवान राम लला के चरणों में हैं।