Ram Stotra: मंगलवार के दिन पूजा के समय करें जटायु कृत इस स्तोत्र का पाठ, सभी संकटों से मिलेगी निजात
Ram Stotra ज्योतिषियों की मानें तो मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा करने से कुंडली में सक्रिय मंगल दोष से छुटकारा मिलता है। शास्त्रों में निहित है कि भगवान श्रीराम की पूजा और ध्यान करने वाले साधक पर हनुमान जी की विशेष कृपा बरसती है। अगर आप भी हनुमान जी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो मंगलवार के दिन स्नान-ध्यान के बाद भगवान श्रीराम की पूजा करें।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 15 Jan 2024 02:10 PM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Ram Stotra: मंगलवार के दिन भगवान श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही मंगलवार का व्रत भी रखा जाता है। इस दिन हनुमान जी की पूजा करने से साधक के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही घर में सुख, समृद्धि और मंगल का आगमन होता है। ज्योतिषियों की मानें तो मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा करने से कुंडली में सक्रिय मंगल दोष से छुटकारा मिलता है। शास्त्रों में निहित है कि भगवान श्रीराम की पूजा और ध्यान करने वाले साधक पर हनुमान जी की विशेष कृपा बरसती है। अगर आप भी हनुमान जी को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो मंगलवार के दिन स्नान-ध्यान के बाद हनुमान जी की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय जटायु कृत श्रीराम स्तोत्र का पाठ करें।
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जटायु कृत श्रीराम स्तोत्र
अगणितगुणमप्रमेयमाद्यं सकलजगत्स्थितिसंयमादिहेतुम् ।उपरमपरमं परात्मभूतं सततमहं प्रणतोऽस्मि रामचन्द्रम् ॥
निरवधिसुखमिन्दिराकटाक्षं क्षपितसुरेन्द्रचतुर्मुखादिदुःखम् ।नरवरमनिशं नतोऽस्मि रामं वरदमहं वरचापबाणहस्तम् ॥
त्रिभुवनकमनीयरूपमीड्यं रविशतभासुरमीहितप्रदानम् ।शरणदमनिशं सुरागमूले कृतनिलयं रघुनन्दनं प्रपद्ये ॥भवविपिनदवाग्निनामधेयं भवमुखदैवतदैवतं दयालुम् ।दनुजपतिसहस्रकोटिनाशं रवितनयासदृशं हरिं प्रपद्ये ॥अविरतभवभावनातिदूरं भवविमुखैर्मुनिभिस्सदैव दृश्यम् ।भवजलधिसुतारणाङ्घ्रिपोतं शरणमहं रघुनन्दनं प्रपद्ये ॥गिरिशगिरिसुतामनोनिवासं गिरिवरधारिणमीहिताभिरामम् ।
सुरवरदनुजेन्द्रसेविताङ्घ्रिं सुरवरदं रघुनायकं प्रपद्ये ॥परधनपरदारवर्जितानां परगुणभूतिषु तुष्टमानसानाम् ।परहितनिरतात्मनां सुसेव्यं रघुवरमम्बुजलोचनं प्रपद्ये ॥स्मितरुचिरविकासिताननाब्जमतिसुलभं सुरराजनीलनीलम्।सितजलरुहचारुनेत्रशोभं रघुपतिमीशगुरोर्गुरुं प्रपद्ये ॥हरिकमलजशंभुरूपभेदात्त्वमिह विभासि गुणत्रयानुवृत्तः ।रविरिव जलपूरितोदपात्रेष्वमरपतिस्तुतिपात्रमीशमीडे ॥
रतिपतिशतकोटिसुन्दराङ्गं शतपथगोचरभावनाविदूरम् ।यतिपतिहृदये सदा विभातं रघुपतिमार्तिहरं प्रभुं प्रपद्ये ॥इत्येवं स्तुवतस्तस्य प्रसन्नोऽभूद्रघूत्तमः ।उवाच गच्छ भद्रं ते मम विष्णोः परं पदम् ॥शृणोति य इदं स्तोत्रं लिखेद्वा नियतः पठेत् ।स याति मम सारूप्यं मरणे मत्स्मृतिं लभेत् ॥इति राघवभाषितं तदा श्रुतवान् हर्षसमाकुलो द्विजः।रघुनन्दनसाम्यमास्थितः प्रययौ ब्रह्मसुपूजितं पदम् ॥