Rama Ekadashi 2024: रमा एकादशी पर पूजा के समय करें इन मंत्रों का जप, आर्थिक तंगी से मिलेगी निजात
सनातन शास्त्रों में निहित है कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागृत होते हैं। इस शुभ अवसर पर देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। भगवान विष्णु की पूजा (Rama Ekadashi 2024) करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साधक श्रद्धा भाव से भगवान विष्णु संग तुलसी माता की उपासना करते हैं।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 22 Oct 2024 02:23 PM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, 28 अक्टूबर को रमा एकादशी है। यह पर्व हर वर्ष कार्तिक महीने में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु संग तुलसी माता की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। इसके साथ ही घर में सुख, समृद्धि एवं शांति आती है। एकादशी व्रत करने से जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुखों का नाश होता है। अगर आप भी आर्थिक तंगी समेत जीवन में व्याप्त परेशानियों से निजात पाना चाहते हैं, तो रमा एकादशी (Rama Ekadashi 2024) के दिन भक्ति भाव से भगवान विष्णु की पूजा करें। वहीं, पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।
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एकादशी मंत्र
1. ऊँ श्री त्रिपुराय विद्महे तुलसी पत्राय धीमहि तन्नो: तुलसी प्रचोदयात।2. ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे, विष्णुप्रियायै च धीमहि, तन्नो वृन्दा प्रचोदयात् ।।
3. तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया ।।लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया ।।
4. वृंदा,वृन्दावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी |पुष्पसारा,नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी ||एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत ||5. महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी ।आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते ।देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः !नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
6. दन्ताभये चक्र दरो दधानं, कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।शांताकारम भुजङ्गशयनम पद्मनाभं सुरेशम।विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम।लक्ष्मी कान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म।वन्दे विष्णुम भवभयहरं सर्व लोकेकनाथम।7. ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।8. मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥9. ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥10. कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा ।बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।करोमि यद्यत्सकलं परस्मै ।नारायणयेति समर्पयामि ॥