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Rama Ekadashi 2024: इस कथा को पढ़े बिना अधूरा रहता है रमा एकादशी का व्रत, पाठ मात्र से दूर होंगे सभी कष्ट

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बेहद महत्व है। पंचांग के अनुसार इस बार यह व्रत 28 अक्टूबर को रखा जाएगा। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत करने और भगवान विष्णु की आराधना करने से साधक की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। वहीं इस दिन व्रत का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए इसकी व्रत कथा (Rama Ekadashi Vrat Katha) का पाठ जरूर करना चाहिए।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sun, 27 Oct 2024 09:49 PM (IST)
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Rama Ekadashi 2024: रमा एकादशी व्रत कथा।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। रमा एकादशी का व्रत बहुत फलदायी माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। पंचांग के अनुसार, एकादशी प्रत्येक माह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के 11वें दिन मनाई जाती है। पंचांग के अनुसार, इस बार यह उपवास 28 अक्टूबर को रखा जाएगा। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत (Rama Ekadashi 2024) को करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं रहती है।

वहीं, इस दिन व्रत का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए इसकी व्रत कथा (Rama Ekadashi Vrat Katha) का पाठ जरूर करना चाहिए, जो इस प्रकार है।

रमा एकादशी व्रत कथा (Rama Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

रमा एकादशी को लेकर कई सारी कथाएं प्रचलित हैं। एक समय की बात है एक मुचुकुंद नाम का राजा था। उसकी पुत्री का नाम चंद्रभागा था, जिसका विवाह चंद्रसेन के बेटे शोभन से हुआ। एक दिन शोभन ससुराल आया। रमा एकादशी से एक दिन पहले राजा मुचुकुंद ने पूरे नगर में यह घोषणा करा दी कि कोई भी व्यक्ति रमा एकादशी के दिन भोजन ग्रहण नहीं करेगा, जिसे सुनकर उनका दामाद परेशान हो गया है, तब उसने अपनी पत्नी से कहा कि ''वह बिना भोजन के जीवित नहीं रह सकता है।''

यह सुनने के बाद उसकी पत्नी ने कहा कि ''आप कहीं और चले जाइए। यदि यहां रहेंगे तो आपको इस व्रत नियम का पालन करना ही होगा।'' तब शोभन ने कहा कि ''जो भाग्य में होगा वो देखा जाएगा और उसने रमा एकादशी का व्रत रखा, लेकिन उसे बहुत तेज से भूख लग गई, जिससे वह व्याकुल हो उठा। वहीं, जब रात्रि जागरण का समय आया तो वह बहुत दुखी हुआ और सुबह तक उसके प्राण निकल गए। उसका अंतिम संस्कार हुआ और चंद्रभागा मायके में ही रहने लगी।

रमा एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से शोभन को मंदराचल पर्वत पर सुंदर देवपुर प्राप्त हुआ। मुचुकुंद नगर का एक ब्राह्मण एक दिन शोभन के नगर में गया, जहां पर उसकी मुलाकात उसकी पत्नी से हुई, जिसने पूरा हाल बताया। उसने पूछा कि ''आपको ऐसा नगर कैसे मिला?'' शोभन ने उसे रमा एकादशी के पुण्य प्रभाव के बारे में बताया। उसने कहा कि ''यह नगर अस्थिर है, आप चंद्रभागा से इसके बारे में बताना''।

वह ब्राह्मण अपने घर गया और अगले दिन चंद्रभागा को पूरी बात बताई। चंद्रभागा उस ब्राह्मण के साथ शोभन के नगर के लिए निकल पड़ी। रास्ते में मंदराचल पर्वत के पास वामदेव ऋषि के आश्रम में वे दोनों गए। वहां वामदेव ने चंद्रभागा का अभिषेक किया। मंत्र और एकादशी व्रत के प्रभाव से चंद्रभागा का शरीर दिव्य हो गया और उसको दिव्य गति मिली।

उसके बाद वह अपने पति शोभन के पास गई। उसने चंद्रभागा को अपनी बाईं ओर बिठाया। उसने अपने पति को एकादशी व्रत का पुण्य प्रदान किया, जिससे उसका नगर स्थिर हो गया। उसने बताया कि ''व्रत के पुण्य प्रभाव से यह नगर प्रलय के अंत तक स्थिर रहेगा।'' उसके बाद दोनों सुखपूर्वक उस नगर में रहने लगे।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।