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Ramcharitmanas Sundarkand: रामचरितमानस के इस कांड में दिया गया है राजनीति, ज्ञान और भक्ति का सुन्दर दर्शन

Sundarkand ka Mahatva हिंदू धर्म में सुंदरकांड के पाठ को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस को जिस तरह श्रद्धापूर्वक पढ़ा और सुना जाता है। ठीक उसी तरह सुंदरकांड का भी पाठ किया जाता है।

By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Tue, 09 May 2023 02:36 PM (IST)
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Ramcharitmanas Sundarkand: जानिए रामचरितमानस में सुंदरकांड का महत्व और विशेषता।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Ramcharitmanas Sundarkand: संवत 1631 ई. में रामनवमी के दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपनी प्रमुख कृति रामचरितमानस की रचना प्रारंभ की थी। जिसका समापन 1633 ई. की मार्गशीर्ष मास हुई। इसमें सम्पूर्ण रामायण को सात कांड में बांटा गया, जिसमें प्रभु श्री राम के सम्पूर्ण जीवन का वर्णन किया गया है। इसलिए इस कृति में 'चरित' और 'काव्य' दोनों के गुण दिखाई देते हैं। यही कारण है सनातन धर्म में इस रचना को भक्ति का प्रतीक माना जाता है। आध्यात्मिक विद्वान बताते हैं कि रामचरितमानस के पाठ से व्यक्ति को विशेष लाभ मिलता है।

जिस प्रकार सनातन धर्म में रामचरितमानस का विशेष महत्व है, ठीक उसी तरह इस महाकाव्य के पांचवे अध्याय या कांड यानि 'सुंदरकांड' का भी बहुत महत्व है। सुंदरकांड में तुलसीदास जी ने रामभक्त हनुमान जी के द्वारा किए गए सीता माता की खोज को बड़े ही सुंदर रूप से बताया है। जहां एक तरफ रामचरितमानस में प्रभु श्री राम के चरित्र का सुंदर बखान किया गया है, उसी प्रकार सुंदर में हनुमान जी की वीरता और उनके राजनीतिक शैली व भक्ति का बखान किया गया है।

क्यों कहा जाता है रामचरितमानस के 5वें भाग को सुंदरकांड?

सम्पूर्ण रामायण में भगवान श्री राम के जन्म से लेकर रावण के वध एवं प्रभु श्री राम के कोमल और गंभीर चरित्र का वर्णन किया गया है। लेकिन सुंदरकांड में हनुमान जी के बल और बुद्धि से की गई माता सीता की खोज को विस्तार से बताया गया है। उनकी इसी सफलता के लिए इस भाग को सुंदरकांड के नाम दिया गया है। कुछ विद्वान बताते हैं कि जिस समय हनुमान जी माता सीता की खोज करते हुए लंका पहुंचे थे, तब उनकी भेंट माता सीता से सुंदर पर्वत पर बने अशोक वाटिका में हुई थी। जिस वजह से इस भाग को सुंदरकांड के नाम से जाना जाता है। लेकिन एक मत यह भी है कि हनुमान जी माता अंजनी उन्हें, सुंदरा नाम से पुकारती थीं, इसलिए इस भाग का नाम सुंदरकांड रखा गया।

सुंदरकांड में हनुमान जी की किस विशेषता को वर्णित किया गया है?

गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस, अपने में एक सुंदर काव्य है और रामायण में जीवन के हर पड़ाव को बड़े ही सुंदर रूप से महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा बताया गया है। लेकिन इसमें सुंदरकांड के जुड़ने से इस कथा को और अधिक बल मिलता है और इसका स्वरूप मनमोहक हो जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें प्रभु श्री राम के प्रिय भक्त हनुमान जी की सुंदर लीलाओं का वर्णन किया गया है। वहीं सुंदरकांड में हनुमान जी की राजनीतिक दक्षता, ज्ञान, कर्म और भक्ति का भी भव्य रूप से वर्णन किया गया है।

सुंदरकांड पाठ करने का महत्व

शास्त्रों में बताया गया है कि हनुमान जी चिरंजीवी हैं और वह कलयुग के देवता हैं। ऐसे में सुंदरकांड का पाठ करने से प्रभु श्री राम और हनुमान जी दोनों प्रसन्न होते हैं। साथ ही इस कांड का पाठ करने से व्यक्ति को बल, बुद्धि और विद्या की प्राप्ति होती है। इसलिए हिंदू धर्म में अधिकांश शुभ अवसर पर या धार्मिक आयोजन में सुंदरकांड का पाठ निश्चित रूप से किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में भी बताया गया है कि सुंदरकांड का पाठ करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और कई प्रकार के ग्रह दोष से छुटकारा मिल जाता है।

सुंदरकांड के पाठ से मिलता है मनोवैज्ञानिक लाभ

रामचरितमानस के इस भाग का अपना विशेष महत्व है। सुंदरकांड में हनुमान जी के द्वारा माता सीता की खोज के लिए लंका जाना, रावण को भरे दरबार में चुनौती देना और लंका दहन करना, इन सभी लीलाओं को विस्तार से बताया गया है। साथ ही रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए युद्ध की तैयारी को भी बताया गया है। ऐसे में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इस कांड का पाठ करने से न केवल हनुमान जी की भक्ति के विषय में ज्ञान मिलता है, बल्कि व्यक्ति के आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी होती है और मानसिक तनाव भी दूर हो जाता है।

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