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Ratha Saptami 2024 Date: कब है रथ सप्तमी? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व

Ratha Saptami 2024 Date ज्योतिषियों की मानें तो रथ सप्तमी तिथि पर ब्रह्म योग का निर्माण हो रहा है। इस योग का निर्माण दोपहर 03 बजकर 18 मिनट तक है। इसके पश्चात इंद्र योग बनेगा। साथ ही रथ सप्तमी पर भद्रा स्वर्ग लोक में निवास करेंगी। भद्रा के स्वर्ग में रहने के दौरान पृथ्वी के समस्त जीवों का कल्याण होता है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 16 Jan 2024 01:22 PM (IST)
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Ratha Saptami 2024 Date: कब है रथ सप्तमी? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Ratha Saptami 2024 Date: हर वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर रथ सप्तमी मनाई जाती है। शास्त्रों में निहित है कि रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव का अवतरण हुआ है। अतः माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी पर सूर्य देव की पूजा-उपासना की जाती है। इसे भानु सप्तमी और अचला सप्तमी भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि सूर्य देव की पूजा करने से आरोग्य जीवन का वरदान प्राप्त होता है। साथ ही सुख, समृद्धि और धन में वृद्धि होती है। ज्योतिष भी कुंडली में सूर्य ग्रह मजबूत करने हेतु भगवान भास्कर की पूजा करने की सलाह देते हैं। आइए, रथ सप्तमी की तिथि, शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि जानते हैं-

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शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 15 फरवरी को सुबह 10 बजकर 12 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 16 फरवरी को सुबह 08 बजकर 54 मिनट पर समाप्त होगी। अतः 16 फरवरी को रथ सप्तमी मनाई जाएगी।

शुभ योग

ज्योतिषियों की मानें तो रथ सप्तमी तिथि पर ब्रह्म योग का निर्माण हो रहा है। इस योग का निर्माण दोपहर 03 बजकर 18 मिनट तक है। इसके पश्चात, इंद्र योग बनेगा। साथ ही रथ सप्तमी पर भद्रा स्वर्ग लोक में निवास करेंगी। भद्रा के स्वर्ग में रहने के दौरान पृथ्वी के समस्त जीवों का कल्याण होता है।

पूजा विधि

माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठें। इस समय सूर्य देव को प्रणाम करें। इसके बाद दैनिक कार्यों से निवृत्त (समाप्त करने) होने के बाद गंगाजल मिले पानी से स्नान करें। इस समय आचमन कर स्वयं को शुद्ध करें और पीले रंग का वस्त्र(कपड़े) धारण करें। इसके बाद जल में अक्षत, तिल, रोली और दूर्वा मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। इस समय निम्न मंत्रों का जाप करें।

'ऊँ घृणि सूर्याय नम:'

"ऊँ सूर्याय नम:"

एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।

अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।

इसके बाद पंचोपचार कर सूर्य देव की पूजा विधि-विधान से करें। इस समय सूर्य चालीसा और सूर्य कवच का पाठ करें। पूजा के अंत में आरती कर सुख और समृद्धि की कामना करें। पूजा के बाद बहती जलधारा में काले तिल प्रवाहित करें। साथ ही गरीबों और जरूरतमंदों को दान दें। मनोकामना पूर्ति हेतु साधक उपवास भी रख सकते हैं।

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डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'