रावण का 10 वां सिर प्रसिद्धि, धन और असंवेदनशीलता को दर्शाता है
वाल्मीकि रामायण के अनुसार ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए रावण टुकड़ों में अपने ही सिर काट दिया था लेकिन जब ब्रह्माजी ने उसे दर्शन दिए तो उन्होंने वरदान स्वरूप उसे 9 सिर का वरदान भी दिया।
By Priti JhaEdited By: Priti JhaUpdated: Tue, 03 May 2016 10:23 AM (IST)
वाल्मीकि रामायण के अनुसार ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए रावण टुकड़ों में अपने ही सिर काट दिया था, लेकिन जब ब्रह्माजी ने उसे दर्शन दिए तो उन्होंने वरदान स्वरूप उसे 9 सिर का वरदान भी दिया।
रावण के इन 10 सिरों में दायीं तरफ के 6 सिर शास्त्रों को और बायीं तरफ के 4 सिर वेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हिंदू पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि त्रेतायुग में सबसे विद्वान ब्रह्मण यदि इस धरती पर था वो रावण ही था।
भारतीय पौराणिक ग्रंथों के अनुसार रावण के 10 सिर कई मनोभावों को प्रदर्शित करते हैं। रावण का पहला और मुख्य सिर पद और योग्यता को दर्शाता है। जिसके कारण अहंकार आता है। रावण मरने के कुछ क्षण पहले तक अहंकार के वशीभूत रहा।
रावण का दूसरा सिर मोह को दर्शाता है। तीसरा सिर अफसोस और पश्चाताप। चौथा सिर क्रोध का प्रतीक था। पांचवा सिर घृणा के लिए जाना जाता था। छठवां सिर भय की पहचान था। रावण का सातवां सिर लालच और लोभ का प्रतिनिधित्व करता था।
आठवां सिर लालच की ओर इंगित करता है। नवां सिर विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण पैदा करता था। और रावण का 10 वां सिर प्रसिद्धि, धन और असंवेदनशीलता को दर्शाता है।