Ravana Lanka Story: रावण ने छलपूर्वक पाई थी सोने की लंका, विश्वकर्मा ने किया था निर्माण
रामायण और राम चरित्र मानस में वर्णित रावण एक नकारात्मक लेकिन मुख्य पात्र है। रावण बहुत बलशाली और ज्ञानी था लेकिन फिर भी अधर्म का साथ देने के कारण अंत में उसे श्री राम की हाथों मृत्यु की प्राप्ति हुई। ऐसे माना जाता है कि छल पूर्वक उसने सोने की लंका को अपना बना लिया था आइए जानते हैं कैसे?
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। रावण एक पराक्रमी योद्धा होने के साथ-साथ प्रकांड विद्वान, राजनीतिज्ञ और महाज्ञानी भी था। साथ ही वह सोने की लंका का स्वामी भी था। सोने के लंका का नाम सुनते ही सबसे पहले मन में रावण का ही विचार आता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण को यह लंका किस प्रकार प्राप्त हुई।
मां पार्वती ने की विनती
एक बार जब माता लक्ष्मी, मां पार्वती जी से भेंट करने के लिए कैलाश पर्वत पर गईं, तो उन्होंने पार्वती जी से कहा कि आप एक राजकुमारी हैं, तो आप किस प्रकार इस कैलाश पर्वत पर अपना जीवन यापन कर रही हैं। इसके बाद माता पार्वती के मन में ही यह विचार आया कि हमारा एक महल होना चाहिए, तब उन्होंने अपने मन की बात शिव जी से कही। तब शिवजी ने पार्वती जी की इस बात को मानते हुए विश्वकर्मा और देव कुबेर को बुलाकर एक सोने का महल बनाने के लिए कहा।
रावण के मन में जागा लालच
महादेव के कहे अनुसार, विश्वकर्मा जी और कुबेर देव ने मिलकर भगवान शिव और माता पार्वती के लिए सोने की लंका का निर्माण किया। सोने की लंका बहुत ही सुंदर और रमणीय थी, जिसे देखकर रावण के मन में इसे पाने का लालच पैदा हो गया। तब उसने लंका को हथियाने का विचार बनाया। एक दिन रावण ने एक बार ब्राह्मण का रूप धारण किया और भगवान शिव के पास पहुंच गया।
तब रावण ने ब्राह्मण के रूप में भिक्षा के तौर पर सोने की लंका की। हालांकि भगवान शिव ने उसे पहचान लिया था, लेकिन फिर भी शिव जी ने उसकी यह मांग पूरी करते हुए उसे भिक्षा के रूप में सोने की लंका दे दी। एक कथा यह भी है, जिसमें वर्णन मिलता है कि रावण ने अपने सौतेले भाई कुबेर से सोने की लंका को बल पूर्वक छीना था।
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