Krishna Pingal Chaturthi 2024: भगवान गणेश की पूजा के समय जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, आय और सौभाग्य में होगी वृद्धि
सनातन शास्त्रों में निहित है कि कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी व्रत (Krishna Pingal Chaturthi Importance) करने से नवविवाहित दंपतियों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। साथ ही साधक के आय सुख सौभाग्य और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है। इस उपलक्ष्य पर व्रती श्रद्धा भाव से भगवान गणेश की पूजा करते हैं। साथ ही भगवान गणेश के निमित्त व्रत रखते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Krishna Pingala Sankashti Chaturthi 2024: हर वर्ष आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। इस वर्ष 25 जून को कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी है। यह पर्व एकदंत भगवान गणेश को समर्पित होता है। इस दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा की जाती है। साथ ही मनोकामना पूर्ति हेतु व्रत रखा जाता है। धार्मिक मत है कि कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी व्रत करने से सुख, सौभाग्य, आय और वंश में वृ्द्धि होती है। साथ ही मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। अगर आप भी मनचाहा वर पाना चाहते हैं, तो कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी पर स्नान-ध्यान के पश्चात विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय व्रत कथा जरूर पढ़ें।
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व्रत कथा
सनातन शास्त्रों में निहित है कि द्वापर युग में महीजित नामक एक प्रतापी राजा था। उसके प्रताप की चर्चा दूर-दूर तक फैली थी। प्रजा में राजा के प्रति बेहद स्नेह और सम्मान था। हालांकि, राजा की कोई संतान नहीं थी। इसके लिए महीजित बहुत परेशान रहता था। अपने गुरुजनों से सलाह लेकर महीजित ने कई यज्ञ किये। साथ ही शुभ तिथियों पर दान-पुण्य भी किया। इसके बावजूद महीजित को संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ। समय के साथ महीजित वृद्ध होने लगे।
एक दिन महीजित बेहद निराश होकर अपने गुरुओं से बोले- मैं चाहता हूं कि कोई उचित उत्तराधिकारी ही राज्य संभाले। मेरे जाने के बाद इस राज्य का क्या होगा ? कौन संभालेगा और क्या वह परंपरा का निर्वहन कर पाएगा ? यह जान गुरुजनों ने प्रजा से राय और सहायता लेने की सलाह दी। तब महीजित ने प्रजा को बुलाकर अपनी आपबीती सुनाई। प्रजा ने गुरुजनों को फैसला सुनाने की सलाह दी। उस समय गुरुजनों ने वन की ओर गमन करने की सलाह दी। महीजित, प्रजा और गुरुजन वन की ओर कूच कर गये।
वन में प्रजाजन की मुलाकात ऋषि लोमश से हुई। उस समय प्रजाजन ने आने का औचित्य बताया। तब ऋषि लोमश ने कहा कि आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर राजन एकदंत भगवान गणेश की पूजा करें। साथ ही चतुर्थी व्रत करें। पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और वस्त्र का दान करें। इन उपायों को करने से राजन को अवश्य पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। कालांतर में राजा महीजित ने ऋषि लोमश के वचनों का पालन किया। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से राजा महीजित और रानी सुदक्षिणा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
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