व्रत और पूजा के दौरान लहसुन-प्याज खाने की क्यों है मनाही? जानिए इसके पीछे की वजह
हिंदू धर्म में ब्राह्मणों के अलावा कई लोग लहसुन और प्याज खाने से बचते हैं। नवरात्रि के दिनों में भी तामसिक भोजन की मनाही होती है। जानिए आखिर क्यों भगवान के भोग तक में लहसुन और प्याज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
By Shivani SinghEdited By: Updated: Tue, 21 Jun 2022 04:18 PM (IST)
नई दिल्ली, Real logic behind not consuming onion and garlic: अक्सर आपने सुना होगा कि ब्राह्मणों के अलावा जो व्यक्ति व्रत रखते हैं वह लोग लहसुन और प्याज खाने से परहेज करते हैं। यहां तक कि भगवान के भोग में भी प्याज और लहसुन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। लेकिन आप क्या जानते हैं कि असल में इसके पीछे की वजह क्या है? जबकि प्याज और लहसुन सेहत के लिए काफी अच्छा माना जाता है। यह खाने का स्वाद बढ़ाने के साथ-साथ कई रोगों से लड़ने में मदद करता है। लेकिन फिर भी इसे ब्राह्मण और व्रत रखने वाले लोग खाने में इस्तेमाल नहीं करते हैं।जानिए इसके पीछे क्या है धार्मिक कारण। इसके साथ ही जानिए लहसुन और प्याज के उत्पन्न होने की पौराणिक कथा।
वेद-शास्त्रों के अनुसार, भोजन के तीन प्रकार होते हैं। पहला भोजन सात्विक, दूसरा राजसिक और तीसरा तामसिक भोजन। इन तीनों ही प्रकार के भोजन का मनुष्य के जीवन पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है।सात्विक भोजन
माना जाता है कि जो व्यक्ति सात्विक भोजन यानी दूध, घी, आटा, सब्जियां, फल आदि का सेवन करता है, तो उनके अंदर सत्व गुण सबसे अधिक होते हैं। ऐसा भोजन करने से व्यक्ति सात्विक बनता है। इसको लेकर एक श्लोक भी कहा गया है।
आहारशुद्धौ सत्तवशुद्धि: ध्रुवा स्मृति:। स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्ष:॥
इस श्लोक का अर्थ है कि आहार शुद्ध होगा तो व्यक्ति एंदर से शुद्ध होगा और इससे ईश्वर में स्मृति दृढ़ होती है। स्मृति प्राप्त हो जाने से हृदय की अविद्या जनित हर एक गांठ खुल जाती है।सात्विक भोजन करने से व्यक्ति का मन शांत होने के साथ विचार शुद्ध होते हैं।राजसिक भोजन
शास्त्रों के अनुसार ऐसा भोजन करने वाले लोगों का मन अधिक चंचल होता है और ये लोग संसार में प्रवृत्त होते हैं। राजसिक भोजन में नमक, मिर्च, मसाले, केसर, अंडे, मछली आदि आते हैं।तामसिक भोजन वेद -शास्त्रों के अनुसार, लहसुन और प्याज तामसिक भोजन की श्रेणी में आता है। माना जाता है कि इन दोनों चीजों का सेवन करने से व्यक्ति अंदर रक्त का प्रवाह बढ़ या फिर घट जाता है। ऐसे में व्यक्ति को अधिक गुस्सा, अंहकार, उत्तेजना, विलासिता का अनुभव होता है। इसके साथ ही वह आलसी और अज्ञानी भी हो जाता है। इसी कारण ब्राह्मणों के अलावा पूजा पाठ करने वाले लोग इसका सेवन नहीं करते हैं।
लहसुन-प्याज उत्पन्न होने के पीछे पौराणिक कथासमुद्र मंथन करने के दौरान लक्ष्मी के साथ कई रत्नों समेत अमृत कलश भी निकला था। अमृत पान के लिए देवताओं और असुरों में विवाद हुआ, तो भगवान विष्णु मोहिनी रुप धारण कर अमृत बांटने लगे। जैसे ही मोहिनी रूप धरे श्री विष्णु ने देवताओं को अमृत पान कराना शुरू किया वैसे ही एक राक्षस देवता का रूप धर कर देवताओं की लाइन में आकर खड़ा हो गया। लेकिन सूर्य और चंद्र देव ने उस राक्षस को पहचान लिया और उन्होने विष्णु जी को बता दिया। ऐसे में भगवान विष्णु ने अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन उसने थोड़ा अमृत पान किया था, जो अभी उसके मुख में था। सिर कटने से खून और अमृत की कुछ बूंदें जमीन पर गिर गईं। उससे ही लहसुन और प्याज की उत्पत्ति हुई। जिस राक्षस का सिर और धड़ भगवान विष्णु ने काटा था, उसका सिर राहु और धड़ केतु के रूप में जाना जाने लगा।
मान्यता है कि राक्षस से उत्पन्न होने के कारण भी लहुसन और प्याज का सेवन नहीं किया जाता है।Pic Credit- Freepikडिसक्लेमर'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'