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Aarti Kunj Bihari Ki: गुरुवार को पूजा के समय जरूर करें ये आरती, पूरी होगी मनचाही मुराद

Aarti Kunj Bihari Ki धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु की पूजा करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त दुख और संकट दूर हो जाते हैं। अगर आप भी भगवान विष्णु की कृपा के भागी बनना चाहते हैं तो गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा करे। इस समय भगवान को पीले रंग का फल फूल हल्दी कुमकुम खीर अक्षत आदि चीजें अर्पित करें।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 04 Jan 2024 07:00 AM (IST)
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Aarti Kunj Bihari Ki: गुरुवार को पूजा के समय जरूर करें ये आरती, पूरी होगी मनचाही मुराद
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Aarti Kunj Bihari Ki ज्योतिष शास्त्र में देवगुरु बृहस्पति को सुखों का कारक माना गया है। कुंडली में गुरु मजबूत होने से व्यक्ति को करियर और कारोबार में ऊंचा मुकाम हासिल होता है। साथ ही समय के साथ पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। अतः ज्योतिष कुंडली में गुरु ग्रह को मजबूत करने की सलाह देते है। कुंडली में गुरु मजबूत करने के लिए जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु की पूजा करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त दुख और संकट दूर हो जाते हैं। अगर आप भी भगवान विष्णु की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो गुरुवार के दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करे। इस समय भगवान को पीले रंग का फल, फूल, हल्दी, कुमकुम, खीर, अक्षत आदि चीजें अर्पित करें। साथ ही पूजा के समय विष्णु चालीसा का पाठ करें। पूजा के अंत में ये आरती करें।

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आरती कुंजबिहारी की

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में बैजंती माला,

बजावै मुरली मधुर बाला ।

श्रवण में कुण्डल झलकाला,

नंद के आनंद नंदलाला ।

गगन सम अंग कांति काली,

राधिका चमक रही आली ।

लतन में ठाढ़े बनमाली

भ्रमर सी अलक,

कस्तूरी तिलक,

चंद्र सी झलक,

ललित छवि श्यामा प्यारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै,

देवता दरसन को तरसैं ।

गगन सों सुमन रासि बरसै ।

बजे मुरचंग,

मधुर मिरदंग,

ग्वालिन संग,

अतुल रति गोप कुमारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

जहां ते प्रकट भई गंगा,

सकल मन हारिणि श्री गंगा ।

स्मरन ते होत मोह भंगा

बसी शिव सीस,

जटा के बीच,

हरै अघ कीच,

चरन छवि श्रीबनवारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू,

बज रही वृंदावन बेनू ।

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

हंसत मृदु मंद,

चांदनी चंद,

कटत भव फंद,

टेर सुन दीन दुखारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

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