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Dhanlakshmi Stotra: शुक्रवार को पूजा के समय करें धनदालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ, आर्थिक तंगी से मिलेगी निजात

धार्मिक मत है कि शुक्रवार के दिन धन की देवी मां लक्ष्मी (Dhanlakshmi Stotra) की पूजा करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी के साथ जगत के पालनहार भगवान विष्णु की उपासना की जाती है। साधक मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए लक्ष्मी वैभव व्रत भी रखते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 22 Aug 2024 08:53 PM (IST)
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Dhanlakshmi Stotra: मां लक्ष्मी को कैसे प्रसन्न करें ?
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में शुक्रवार के दिन धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त लक्ष्मी वैभव व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से आय, सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही आर्थिक तंगी से मुक्ति मिलती है। अतः साधक शुक्रवार के दिन स्नान-ध्यान से निवृत्त होने के बाद विधि-विधान से धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं। साथ ही पूजा (Maa Laxmi Puja Vidhi) के समय मां लक्ष्मी को श्रीफल, खीर, सफेद रंग की मिठाई आदि चीजें अर्पित करते हैं। अगर आप भी मां लक्ष्मी की कृपा के भागी बनना चाहते हैं और आर्थिक तंगी से मुक्ति पाना चाहते हैं, तो शुक्रवार के दिन भक्ति भाव से धन की देवी की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय धनदालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें।

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॥ धनदालक्ष्मी स्तोत्रम् ॥

देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।

कृपया पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम्॥

ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।

दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम्॥

पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह महेश्वरः।

उचितं जगदम्बासि तव भूतानुकम्पया॥

स सीतं सानुजं रामं सांजनेयं सहानुगम्।

प्रणम्य परमानन्दं वक्ष्येऽहं स्तोत्रमुत्तमम्॥

धनदं श्रद्धानानां सद्यः सुलभकारकम्।

योगक्षेमकरं सत्यं सत्यमेव वचो मम॥

पठंतः पाठयंतोऽपि ब्रह्मणैरास्तिकोत्तमैः।

धनलाभो भवेदाशु नाशमेति दरिद्रता॥

भूभवांशभवां भूत्यै भक्तिकल्पलतां शुभाम्।

प्रार्थयत्तां यथाकामं कामधेनुस्वरूपिणीम्॥

धनदे धनदे देवि दानशीले दयाकरे।

त्वं प्रसीद महेशानि! यदर्थं प्रार्थयाम्यहम्॥

धराऽमरप्रिये पुण्ये धन्ये धनदपूजिते।

सुधनं र्धामिके देहि यजमानाय सत्वरम्॥

रम्ये रुद्रप्रिये रूपे रामरूपे रतिप्रिये।

शिखीसखमनोमूर्त्ते प्रसीद प्रणते मयि॥

आरक्त-चरणाम्भोजे सिद्धि-सर्वार्थदायिके।

दिव्याम्बरधरे दिव्ये दिव्यमाल्यानुशोभिते॥

समस्तगुणसम्पन्ने सर्वलक्षणलक्षिते।

शरच्चन्द्रमुखे नीले नील नीरज लोचने॥

चंचरीक चमू चारु श्रीहार कुटिलालके।

मत्ते भगवती मातः कलकण्ठरवामृते॥

हासाऽवलोकनैर्दिव्यैर्भक्तचिन्तापहारिके।

रूप लावण्य तारूण्य कारूण्य गुणभाजने॥

क्वणत्कंकणमंजीरे लसल्लीलाकराम्बुजे।

रुद्रप्रकाशिते तत्त्वे धर्माधरे धरालये॥

प्रयच्छ यजमानाय धनं धर्मेकसाधनम्।

मातस्त्वं मेऽविलम्बेन दिशस्व जगदम्बिके॥

कृपया करुरागारे प्रार्थितं कुरु मे शुभे।

वसुधे वसुधारूपे वसु वासव वन्दिते॥

धनदे यजमानाय वरदे वरदा भव।

ब्रह्मण्यैर्ब्राह्मणैः पूज्ये पार्वतीशिवशंकरे॥

स्तोत्रं दरिद्रताव्याधिशमनं सुधनप्रदम्।

श्रीकरे शंकरे श्रीदे प्रसीद मयिकिंकरे॥

पार्वतीशप्रसादेन सुरेश किंकरेरितम्।

श्रद्धया ये पठिष्यन्ति पाठयिष्यन्ति भक्तितः॥

सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद् ध्रुवम्

धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।

भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धन-धान्यादिसम्पदः॥

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।